३ मुख्य प्रकार के पौधे! Read this article in Hindi to learn about the three main types of plants. The types are:- 1. सूक्षम पौधे (Delicate Plants) 2. पौधे जो पानी में बढ़ते हैं (Plants that Grows in Water) 3. पौधे जिन्हें कम पानी की आवश्यकता होती है (Plants that Require Less Water Control).

1. सूक्षम पौधे (Delicate Plants):

i. शैवाल (एल्गी):

ये अत्यधिक छोटे पौधे होते हैं, जिनके विभिन्न अंगो जैसे जड़, तना, व पत्तियों में कोई अनार नहीं किया जा सकता । परन्तु उन सबमें हरा भोजन प्रदान करने वाला वर्णक क्लोरोफिल रहता है । अधिकांश जलीय पर्यावरण में वे भोजन व प्राणवायु के प्रारंभिक उत्पादक होते हैं । जलीय संचयों में इनकी साधारण उपस्थिति तथा उनकी महत्वपूर्ण भूमिका के कारण इन्हें कभी-कभी जलीय घास कहा जाता है ।

शैवाल विभिन्न रूपों में पाया जाता है । कुछ शैवालों में एक ही स्वयंपूर्ण कोशिका होती है जिसके अंशों को केवल शक्तिशाली सूक्ष्मदर्शी से ही देखा जा सकता है । किन्तु अधिकांश शैवालों को स्थिर पानी में हरे व भूरे रंग की पतली सतह के रूप में लहराते हुए शैवाल देखा जा सकता है ।

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सभी शैवाल आकार में छोटे नहीं होते । कई पोखरों में हम चमकीले हरे रंग के धागे समान शैवाल के गुच्छों को देख सकते हैं । जिन्हें (स्पाइरोगाइरा) कहते हैं । इन कोशिकाओं के अंदर के क्लोरोप्लास्ट को सूक्ष्मदर्शी की सहायता से देखा जा सकता है ।

समुद्र में पाए जाने वाले विभिन्न प्रकार के विशाल समुद्री घास (सीवीड्‌स) एक प्रकार के शैवाल ही होते हैं । वे असंख्य कोशिकाओं से बने होते हैं व आकार में बहुत अधिक बड़े हो जाते हैं फिर भी उनमें सही अर्थ में जड़े, तना व पत्तियां नहीं होती । इन शैवालों का एक उदाहरण है महा समुद्री केल्प जो 30 मीटर से अधिक लंबाई तक बढ़ सकते हैं ।

शैवाल फफूंद के साथ स्वाभाविक संयोग में पाए जाते हैं । इस विशेष प्रकार के सहजीवी रुप को लाइकेन कहते हैं जो वृक्षों अथवा चट्टानों पर विभिन्न रंगों में पैबंदों के समान आकार में उभरता है । साधारणत: यह प्रथम जीव रूप है जो ऊसर चट्टानों की सतहों जैसे बजर क्षेत्रों में जैसे ही नमी मिलती है तो वह अपनी बस्तियां बसा लेते हैं ।

प्रारंभ में इनकी वृद्धि की गति धीमी होती हैं किन्तु बाद में यह जीवों के लिए उपयुक्त बन जाती है । लाइकेन हवा में पाए जाने वाले हानिकारक पदार्थों के प्रति अति संवेदनशील होते हैं तथा जहां की वायु अधिक प्रदूषित होती है, वहां यह मर जाते हैं । वहीं दूसरी ओर इनकी उपस्थिति यह बताती है कि उस स्थान की वायु अच्छी है तथा वहां नमी विद्यमान है ।

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ii. काई (मॉस):

एक अन्य सामान्य रूप से पाए जाने वाला पौधों का प्रकार है कई । इन्हें पोखरों के समीप, गीली दीवारों पर अथवा वर्षा के मौसम में घर से बाहर सभी जगह हम मुलायम, रपटने वाले हरे पैबंदों के रूप में आसानी से देख सकते हैं । काई शैवाल की अपेक्षा अधिक विकसित हैं किन्तु अन्य पौधों की तुलना में वे पिछड़े ही हैं । इनमें अलग से पत्नियाँ व तना होते हैं किन्तु उपयुक्त जड़ें नहीं होतीं ।

जब हम इन्हें साधारण सूक्ष्मदर्शी के नीचे देखते हैं तो इसकी बहुत छोटी-छोटी पत्तियां झुंड में बंधी हुई हमें नजर आती हैं इसकी डोरे समान जड़ें भी दिखते हैं जिन्हें मूलांग कहते हैं । ये काई को, जहां ये बढ़ती है, उसकी सतह से बांध कर रखते हैं । जड़ों के समान ही ये पोषक तत्व एकत्र करने में मदद करते हैं ।

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सामान्य काई लगभग एक सेंटीमीटर मोटी होती है जो एक पिंड के रूप में घनी व मखमली चटाई के समान होती है जब इन्हें पानी नहीं मिलता तब ये सूखकर भूरी हो जाती हैं किन्तु ये अपने हरे रूप में पुन: जीवित हो जाती हैं भले ही एक वर्ष या अधिक की अवधि बीत चुकी हो ।

iii. पर्णांग (फर्न):

यदि हम किसी दलदली जगह अथवा किसी खाई के आस-पास देखें तो हमें कुछ छोटे पौधे दिखाई देंगे जिनकी पत्तियां सुन्दर व नाजुक होती हैं । ये पत्तियां छोटी-छोटी पत्तियों में बटी होती है तथा किनारों पर मुड़ी हुई होती हैं । संपूर्ण पौधा पत्तियों के एक समूह के रूप में दिखता है जो जमीन से अथवा चट्टानों के बीच से बाहर निकला होता है ।

इन रोचक पौधों को पर्णांग (फर्न) कहते हैं । ये विकास की दृष्टि से काई के बाद अधिक ऊंचे सोपान पर आते हैं था इनमें पृथक से जड़े, तना व पत्तियां होती हैं । किन्तु इनमें फूल नहीं आते तथा ये बीजाणुओं (स्पोर) के माध्यम से प्रजनन करते हैं । बीजाणु बनाने वाले अंगों को हम किसी के निचले भाग में छालों के रूप में देख सकते हैं ।

इन पत्तियों को साधारणत: ताल-पत्र (फ्रॉन्ड) कहते हैं । ताल-पत्र जमीन से घुमावदार स्प्रिंग के रूप निकलते है तथा धीरे-धीरे फैलते हैं व अपना सामान्य रूप ले लेते हैं ।

अधिकांश पर्णांग एक मीटर से कम ऊंचाई के ही होते हैं । किन्तु जिस प्रकार शैवालों के विशाल रूप सीवीड के रूप में होते हैं, उसी प्रकार कुछ पर्णांग 25 मीटर तक ऊंचे होते हैं । इसीलिए उन्हें-योग्य नाम दिया गया है- वृक्ष पर्णांग (ट्री फर्न) |

2. पौधे जो पानी में बढ़ते हैं (Plants that Grows in Water):

जब कभी पौधों की बात करते हैं तो हम हमेशा यही सोचते हैं कि पौधों को बढ़ने के लिए ठोस जमीन अथवा मिट्टी की आवश्यकता होती है । यह सत्य है कि अधिकांश पौधे, विशेषत: बड़े पौधे जिन्हें हम सामान्य रूप से देखते हैं, जमीनी पौधे होते हैं । जब कि इन पौधों को तथा अन्य पौधों को जीवित रहने तथा बढ़ने के लिए विभिन्न मात्रा में पानी की आवश्यकता होती है ।

कुछ पौधे ऐसे भी होते हैं जो केवल पानी में अथवा नमी वाले क्षेत्रों में ही बढ़ते हैं । इन्हें जलीय पौधे कहते हैं जिनके अनेकों प्रकार होते हैं । चूंकि इन पौधों की किस्में होती हैं जो आकार, रचना तथा बढ़ने के अनुसार स्थितियों में भिन्न-भिन्न होती हैं इसलिए इनका संग्रह तथा अध्ययन एक रोचक गतिविधि हो सकती है ।

जलीय पौधों के बारे में पहली बात जो उल्लेखनीय होती है वह है उनके मृदु अंग तथा कम से कम जड़ें । अनेक पौधों में विशेष वायु कक्ष होते है जो उन्हें पानी पर लहराने में तथा डूबे हुए भागों को वायु प्रदान करने में मदद करते हैं ।

जलीय पौधों को निम्न वर्गों में आसानी से बाटा जा सकता है:

(1) डूबे हुए पौधे:

ये पौधे पूर्ण रूप से पानी के अंदर ही रहते हैं । ये या तो नीचे की जमीन से जकड़े रहते हैं । ये या तो नीचे की जमीन से जकड़े रहते हैं या पानी के बीच ही लटके रहते हैं जैसे- हाईड्रिला ।

(2) आंशिक डूबे हुए पौधे:

इन जलीय पौधों की जड़ें नीचे की दलदली सतह में रहती हैं तथा उनके तने अथवा डंठल लंबे होते हैं जिससे उनके पत्ते पानी की सतह पर लहरा सके (जैसे-कमल, नीलकमल) |

(3) पानी पर स्वतंत्र रूप से तैरने वाले पौधे:

लैमना, पिस्टिया, वाटर हायसिंथ या जलकुंभी आदि सामान्य रूप से पाए जाने पौधे इसके उदाहरण हैं । ये पौधे पानी की सतह को आच्छादित करते हुए पाए जाते हैं ।

इन पौधों के अतिरिक्त हमें वाटर हायसिंथ तथा एरॉइड जैसे कुछ पौधे मिल सकते हैं जो पानी के किनारों पर लिपटे रहते हैं तथा जो दलदली जमीन तथा उथले पानी में उगते हैं । अरबी (कोलोकेशिया) जैसे अनेक पौधों को हम दलदल में उगे हुए देख सकते हैं ।

जलीय पौधों के साथ एक गतिविधि:

सभी पौधों के समान जलीय पौधे भी प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया के समय ऑक्सीजन पैदा करते हैं । यह ऑक्सीजन उस जल निकाय में रहने वाले जलीय प्राणियों की मदद करती है । नीचे दिए गए वर्णन के द्वारा हम इस वायु उत्पादन की प्रक्रिया को देख सकते हैं ।

एक पारदर्शी प्लास्टिक की थैली में कुछ जलीय पौधों, विशेषत: उन पौधों को जिनकी पत्तियां उगी हों, को पानी में लटकाकर रखें थैली को पानी से पूर्णत: भर दें व उसका मुंह बांध दें । थैली को ढीला ही रहने थैली को धूप में रख दें । थोड़ी ही देर में पौधे पर वायु के बुलबुले प्रकट हो जाएंगे ।

कुछ ही समय में ये बुलबुले बड़े होंगे तथा थैली के अंदर हमें वायु संचयित होती दिखेगी । यह वायु ऑक्सीजन ही है यह बताने के लिए कुछ और सोपानों की आवश्यकता होगी । फिर भी पानी के अंदर किसी प्रकार की वायु उत्पादित होती है यह बताने के लिए यह एक सरल गतिविधि है ।

3. पौधे जिन्हें कम पानी की आवश्यकता होती है (Plants that Require Less Water Control):

पौधे रेगिस्तान में भी उगते है जहां बहुत कम पानी उपलब्ध रहता है । स्पष्ट रूप से इन परिस्थितियों में उगने वाले पौधों में कुछ विशिष्ट क्षमताएं होती हैं । ये क्षमताएं उन पौधों की संरचना में जैसे उनकी विशिष्ट जड़ों, तनों व पत्तियों में कुछ बदलाव करके आती हैं । ऐसे पौधों के समूह, जिन्हें बहुत कम पानी की आवश्यकता होती है तथा इसलिए वे रेगिस्तान जैसे सूखे स्थानों में उगते हैं, को जीरोफाइट्‌स (मरुद्‌भिद) कहते हैं ।

इन पौधों की संरचना में जो बदलाव होते हैं, उनमें से एक है मूसला जड़ (टैप रुट) जो पानी सींचने के लिए गहरी जाती है । कुछ पौधों की जड़ें छोटी व मांसल होती हैं तथा वे सतह के पास ही होती हैं जो थोड़ी भी नमी को खींच लेती हैं । इन पौधों की पत्तियां मांसल होती हैं तथा कुछ पौधों की मोटे आच्छादन वाली होती हैं ।

कुछ पौधों में पत्तियां नुकीले काटी में परिवर्तित हो जाती हैं जिससे पानी की क्षति को रोका जा सके तथा सुरक्षा भी हो सके । सूखे क्षेत्र के अनेक पौधों की जडें मोटी व मासल होती हैं व उनके अन्दर जल-संग्रह के ऊतक होते हैं ।

जीरोफाइट्‌स पौधों के सबसे प्रचलित उदाहरण हैं नागफनी या सेंहुड़ (कैक्टस) । कैक्टस अनेक आकार व विस्तार के होते हैं । इनमें से प्रत्येक के काटे व फूल भिन्न-भिन्न प्रकार के होते हैं । कैक्टस लगभग सभी में देखे जा सकते हैं तथा ये उगाने व देखभाल करने में सरल होते हैं ।

कैक्टस, पौधों के उस समूह के अंतर्गत आते हैं जिन्हें हम गूदेदार पौधे कहते हैं । इनकी पत्तियां व/अथवा जडें मोटी व चमड़े के समान होती हैं । सभी कैक्टस गूदेदार पौधों की श्रेणी में आते हैं किन्तु इस श्रेणी के अनेक ऐसे पौधे होते हैं जो कैक्टस नहीं होते तथा उनमें काटे नहीं होते ।

इस प्रकार के पौधे भी आसानी से उगते हैं व उन्हें विशेष देखभाल की आवश्यकता नहीं रहती । इन्हें कम पानी व जमीन की जरूरत होती हैं व इस संबंध में इनकी आवश्यकता कैक्टस के समान ही होती हैं । इस श्रेणी के सामान्य नर्सरी अथवा बगीचों में पाए जाने वाले पौधे है- रामबाण (एगेन), धृतकुमारी (ऐलो) तथा पत्थर चटटा (ब्रायोफिल्ल्म) |

कैक्टस तथा गूदेदार पौधों को उगाना:

कैक्टस उगाने के लिए उत्तम जल निकासी की आवश्यकता होती है । ये हल्की जमीन, पत्तियों व कचरे के अपघटन, मोटी रेत, बजरी, ईंट के छोटे टुकड़े तथा कोयले के ढलों के मिश्रण में अच्छी तरह उगते हैं । थोड़ा चूना डालने से इनकी वृद्धि को मदद मिलती है । कैक्टस तथा गूदेदार पौधों को उगाने के लिए मिट्टी अथवा प्लास्टिक के उथले बर्तन जिनमें पानी निकासी हेतु नीचे छेद हो, उपयुक्त होते हैं ।

बर्तन के दो तिहाई भाग को उपरोक्त दिए गए मिश्रण से भर दीजिए । उसमें कैक्टस के कुछ टुकड़े रोप दीजिए तथा उन्हें उस स्थिति में संभाले रखने के लिए कुछ बड़े ककड़ी अथवा ग्रेनाइट के टुकड़ों से पैक कर दें । थोड़ा पानी डालकर बर्तन धूप में रख दे ।

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