पौधों का विकास और उन्नति विकास ! Read this article on ‘Plant Growth and Development’ in Hindi language.

Plant Growth and Development


Contents:

  1. बीज से पौधे की और (From Seed to Plant)
  2. अंकुरित होते बीज (Sprouts Seeds)
  3. अंकुरित बीजों का बग़ीचा (Garden of Germinated Seeds)
  4. किसी स्थान की अंकुरण से पहचान (Identification of a Place by Sprouting)
  5. अंकुरित बीज का सूक्ष्म निरीक्षण (Microscopic Inspection of Seedbed)
  6. बिना मिट्टी का बगीचा (Earth Less Garden)
  7. पौधे किस दिशा में बढ़ते (Direction in which Plant Grows)
  8. बिना बीज के पौधों का उगना (Growing Plants Without Seeds)
  9. विशिष्ट प्रकार के तनों से पौधे (Plants from Special Types of Stems)
  10. पत्तियों से नए पौधे (New Plants form Leaves)
  11. अन्य पौधों से पौधों का विकास (Evolution of Plants from Other Plants)
  12. पौधे व पानी (Plants and Water)


1. बीज से पौधे की और (From Seed to Plant):

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जैविक संसार के सदस्यों के रूप में पौधे भी बढ़ते हैं, बूढ़े होते हैं व मरते है । जीवन की इन प्रक्रियाओं को हम रोज ही देखते हैं किन्तु उनकी ओर ध्यान नहीं देते । फिर भी पौधों के शरीर वैज्ञानिक तथा अन्य विशेषज्ञ अपना समय इन क्रियाओं का अध्ययन करने में बिताते हैं । हमें विशेषज्ञों की तरह ज्ञान न होते हुए भी हम इन प्रक्रियाओं को साधारण गतिविधियों के माध्यम से अवलोकित कर सकते हैं ।

पौधों के जीवनचक्र की सबसे आम घटना जो हम सभी जानते हैं वह है नये पौधे का जन्म अथवा पौधों का प्रजनन । इस घटना को हमने कई बार अपने बगीचे में सब्जी या फूलों के पौधे लगाते समय अथवा निदाई करते समय अनुभव किया होगा ।

जब हम नए पौधे की शुरूआत के संबंध में विचार करते हैं तब हमारा ध्यान बीज की ओर जाता है । बीज एक सुप्तावस्था में पौधा ही होता है जिसके आवरण के अन्दर उसका जीवन तंत्र बन्द रहता है । इस तंत्र में पौधे का भ्रूण तथा उसे जीवित रखने हेतु पर्याप्त मात्रा में भोज्य सामग्री भी होती है जो उसके अंकुरण तथा प्रारंभिक जीवन को पार लगा देती है ।

बीज में यह भोजन सामग्री भ्रूण के आस-पास भ्रूणपोष (एन्डोस्पर्म) के रूप में अथवा दो विशिष्ट पत्तियों के रूप में जिन्हें बीजपत्र (काटिलेडन) कहते हैं, पाई जाती है (जैसे वाली में) |

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बीज उसी अवस्था में लंबे समय तक रह सकता है तथा अंकुरण हेतु सही परिस्थिति मिलने पर बढ़ना प्रारंभ कर देता है । अंकुरण हेतु आवश्यक परिस्थिति होती है-पानी व ऊष्मा की उपस्थिति । जब बीज को ये स्थितियां मिलती हैं तो वह पानी सोखता है तथा फूल कर नरम पड़ जाता है ।

अन्त में उसका आवरण टूटता है तथा पौधे का जीवन प्रारंभ हो जाता है-पहले जड़ (रेडिकल) व फिर तना बनने वाला भाग प्रांकुर (प्लमुल) निकलता है । इस सारी प्रक्रिया को अंकुरण कहते हैं और इसे हम आसानी से सृजन कर अवलोकित कर सकते हैं ।


2. अंकुरित होते बीज (Sprouts Seeds):

कई घरों में अंकुरित बीजों का प्रयोग खाने के लिए भोजन के रूप में किया जाता है । इसे प्राय: बीजों को मुख्यत: दालों के बीजों को-जैसे मूंग अथवा चना को पानी में भिगोकर दिन भर रखा जाता है तथा बाद में पानी निकालकर इन्हें गरम स्थान पर बांधकर रखा जाता है ।

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अंकुरण की प्रक्रिया को अवलोकित करने हेतु हम निम्नलिखित सरल तरीके उपयोग में ला सकते हैं:

(i) कुछ दालों के बीज लीजिए- जैसे मूंग, उड़द, राजमा, मटर, चना आदि । ये बीज ताजे व पूर्ण होने चाहिए, टूटे हुए न हों इन्हें प्लास्टिक की बड़े मुंह वाली बरनी में रखें ।

(ii) इस बरनी के मुंह को नायलॉन की मच्छरदानी की जाली से ढक दें व रबर बैंड से कस दें ।

(iii) बीजों को पानी में डुबो दें व कुछ घण्टों के लिए वैसे ही रहने दें ।

(iv) बरनी को उल्ट कर पानी निकाल दें व टेढ़ी करके रख दें । यदि बीजों में थोड़ा पानी रह जाए तो बेहतर होगा ।

(v) एक या दो दिन में बीज अंकुरित हो जाएंगे । बीजों को अंकुरित होने के लिए लगने वाला समय बीजों के प्रकार एवं वातावरण के तापमान पर निर्भर करेगा । बहुत सूखे स्थान पर आपको बीजों पर पानी डालकर उन्हें नम रखना होगा ।

बीजों की फूली अवस्था से लेकर अंकुरित होने की अवस्था तक का परीक्षण करने हेतु कुछ बीजों को समय-समय पर निकाल कर देखा जा सकता है बीजों के आवरण को हटाकर तथा उसके दोनों भागों को अलग कर उसके अन्दर के भागों का अवलोकन किया जा सकता है । आवर्धक लैंस की सहायता से हम पौधे के विकास की विभिन्न अवस्थाएं देख सकते हैं ।


3. अंकुरित बीजों का बग़ीचा (Garden of Germinated Seeds):

एक संकरे बर्तन की तली में कुछ कपास रखें व उसे पूर्ण रूप से गीला कर लें । उसके ऊपर कुछ ऐसे बीज बिखेर दें जो शीघ्र अंकुरित होते हैं जैसे राई अथवा मूंग तथा इसे किसी गरम स्थान पर रख दें । उसे गीला रखने हेतु बीच-बीच में पानी का छिड़काव करें । आप बीजों को अंकुरित होते हुए देख सकते हैं ।

कुछ ही दिनों में वे अंकुरित बीजों के जंगल के रूप में बढ़ जाएंगे । कुछ दिन और रखने के बाद यदि आप पौधों के सिरों को पकड़कर उठाएंगे तो पूरा का पूरा गुच्छ हाथ में आ जायेगा साथ में नीचे कपास भी चिपका होगा । आप देखेंगे कि जड़ें टेढ़ी-मेढ़ी होकर कपास में फैल गई हैं व उन्होंने कपास को उसी प्रकार जकड़ती हैं ।


4. किसी स्थान की अंकुरण से पहचान (Identification of a Place by Sprouting):

विभिन्न स्थानों से जहां कोई वनस्पति न हो ऊपरी सतह की मिट्टी विभिन्न बर्तनों में एकत्र करें । बर्तनों में थोड़ा पानी डालकर मिट्टी को गीला करें । बर्तनों को साफ पॉलिथीन की थैलियों में रखकर उनका मुंह बांध दें । इन्हें किसी गरम स्थान में रख दें ।

मिट्टी की नमी बनाये रखने के लिए उसमें समय-समय पर पानी डालते रहें । कुछ समय बाद आप देखेंगे कि मिट्टी में पौधे ऊग आए हैं । पौधों का परीक्षण करने पर आपको उस स्थान के बारे में जानकारी मिल जाएगी जहां से आपने मिट्टी को उठाया है ।


5. अंकुरित बीज का सूक्ष्म निरीक्षण (Microscopic Inspection of Seedbed):

यद्यपि हम हमारे बगीचे में पौधों को अंकुरित होते व बढ़ते हुए देखते हैं किन्तु हम उस प्रक्रिया को देखने से वंचित रहते हैं क्योंकि यह जमीन के अन्दर होती है । हम इस प्रक्रिया का सूक्ष्म अध्ययन कर सकते हैं । इसके लिए हमें एक सरल सा ढांचा बनाना होगा ।

(i) एक 200 मि.ली. की प्लास्टिक बरनी लें । उसके अंदर की दीवारों पर फिट हो उतना सोख्ता कागज (ब्लॉटिंग पेपर) अथवा फिल्टर पेपर लें ।

(ii) बरनी की अंदर की दीवारों पर यह कागज लगा दें ।

(iii) बरनी के निचले भाग में कपास या कोई अन्य पानी सीखने वाला पदार्थ भर दें । इसे गीला कर दें ।

(iv) किन्हीं छोटी तीलियों की सहायता से सोखता कागज को थोड़ा हल लें व बरनी के अन्दर भी दीवारों पर दालों के बीज बिखेर । ये बीज बरनी की दीवारों पर चिपक जाएंगे ।

(v) पहले से रखे कपास पर कुछ और कपास रखकर उसे पानी से भिगो दें । बरनी को ढक्कन से बद कर तेज धूप से दूर किसी गरम स्थान पर रख दें ।

(vi) बरनी की पारदर्शी दीवारों से बीजों का तथा उससे निकलने वाले भागों का रोज अवलोकन करें । देखें कि वे किस दिशा में जाते हैं तथा उनमें शाखाएं कैसी निकलती हैं । जब अंकुर सोखते कागज के ऊपरी सिरे तक पहुंच जाए तो बरनी का ढक्कन खोलें व उसे उजाले में रख दें । कुछ ही दिनों में पौधे बरनी से बाहर तक बढ़ जायेंगी तथा प्रकाश में रहने से पत्तियां हरी हो जाएंगी । बरनी की तली में जड़ें बढ़ती हुई देखी जा सकती है तथा धीरे-धीरे उन्हें कपास में जकड़ता हुआ देखा जा सकता है ।

आप यह भी देखेंगे कि यदि बीज बरनी की दीवार पर उल्टा लटक गया हो (जानबूझकर अथवा अनायास ही) तो जड़ जो पहले प्रस्फुटित होती हैं, पहले ऊपर की ओर जाएगी व बाद में नीचे की और अपना रूख करेगी । इस गतिविधि के माध्यम से हम पौधे के प्रारंभिक जीवन की अनेक मनोरंजक घटनाओं को देख सकते हैं ।


6. बिना मिट्टी का बगीचा (Earth Less Garden):

उपरोक्त प्रकार की संरचना में हम केवल शीघ्र बढ़ने वाले पौधे ही लगा सकते हैं । किन्तु कुछ समय बाद ये पौधे रेशेदार व पीले पड़ जाएंगे और अधिक समय तक उन्हें वैसे ही रहने देंगे तो वे मर जाएंगे । ऐसा इसलिए होगा क्योंकि हम उन्हें केवल पानी ही उपलब्ध करा रहे हैं ।

बीज के अंदर के पोषक तत्व जब तक विद्यमान होंगे पौधे जीवित रहेंगे । ये पोषक तत्व समाप्त होने पर पौधे मर जाएंगे । साधारण अवस्था में हम पौधों को मिट्टी में उगाते हैं तथा उन्हें पोषक तत्व मिट्टी से प्राप्त होते है । और अधिक स्पष्ट कहें तो ये पौष्टिक तत्व मिट्टी के जैविक अवयवों से प्राप्त होते हैं ।

फिर भी पौधों को केवल पानी में जीवित रखना संभव है यदि पानी में घुलने वाले पौष्टिक तत्व मिला दिए जाए वास्तव में इस प्रक्रिया को जिसे जल कृषि (हाइड्रोपॉनिक कल्टीवेशन) कहते हैं, का प्रयोग बड़े वाणिज्यिक पैमाने पर सब्जियां व चारा उगाने के लिए किया जाता है । हम उपरोक्त प्रकार से अंकुरित बीजों से एक छोटा सा जलीय उद्यान बनाएंगे ।

(i) एक लीटर पानी में कैल्शियम नाइट्रेट (1 ग्राम) पोटेशियम नाइट्रेट (0.2 ग्राम), मैग्नेशियम सल्फेट (0.2 ग्राम), फेरस सल्फेट (0.1 ग्राम) तथा यूरिया (0.2 ग्राम) का घोल तैयार कीजिए । इस घोल की थोड़ी-थोड़ी मात्रा उस कपास पर डालते रहिए जिस पर बीज अंकुरित हुए हैं । यह घोल उतनी मात्रा में डालिए जिससे कपास नम रहे । इस घोल द्वारा पौधों को आवश्यक पौष्टिक तत्व मिलते रहते हैं, जिससे वे अधिक लंबे समय तक स्वस्थ रह सकते हैं व बढ़ सकते हैं ।

(ii) इस जल कृषि मिश्रण को बनाने की एक और आसान विधि है । किसी भी NPK (नाइट्रोजन-फास्फोरस-पोटेशियम) उर्वरक का एक ग्राम लें व उसे एक लिटर पानी में मिलाएं तथा उसमें पर्याप्त मात्रा में चूना डालें जिसमें pH उदासीन रह सके । यदि स्थानीय रूप से उपलब्ध पानी में लौह व मैग्नीशियम पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है तो यह मिश्रण अधिक कारगर साबित होगा ।

(iii) जल संबंधित मिश्रण बनाने की सबसे सरल व सुरक्षित एक और विधि है । पानी में गोबर से बनी परिष्कृत खाद घोलिए तथा अधिपृष्ठ को अलग कर लीजिए । चूंकि घोल की सांद्रता घोल की गुणवत्ता पर निर्भर करती है । अत: बार-बार प्रयोग करने पर उपयुक्त सांद्रता का मिश्रण बनाया जा सकता है ।


7. पौधे किस दिशा में बढ़ते (Direction in which Plant Grows):

हम उपरोक्त प्रकार से बनाए हुए प्रस्फुटित बीजों के साथ निम्न दो गतिविधियां कर सकते हैं, इन गतिविधियों का प्रयोग कुछ और रोचक गतिविधियों में हम कर सकते हैं जो पौधों के विकास व वृद्धि में बाहरी तत्वों के प्रभाव से संबंधित होंगी:

(1) एक बरनी को जिसकी दीवार पर बीज अंकुरित हुआ है, उसे आड़ा कर दीजिए । उसे उसी स्थिति में बिना बदले, नम बनाए रखें । आप देखेंगे कि पौधे मुड़कर ऊपर की ओर बढ़ रहे हैं । जब पौधे का झुकाव पूर्ण रूप से दिखाई दे, बरनी को सीधा कर दीजिए । आप देखेंगे कि कुछ दिन बाद पौधे ने फिर मोड़ ले लिया है वह फिर ऊपर की ओर बढ़ रहा है और उसके बीच में बल पड़ गया है । यह इसलिए होता है क्योंकि पौधा गुरुत्वाकर्षण की शक्ति से इस प्रकार प्रभावित होता है कि उसकी जड़ नीचे बढ़ती है व तना ऊपर की ओर ।

(2) पौध लगी हुई बरनी को एक कार्ड बोर्ड के बक्से के अन्दर रखें इस बक्से की एक भुजा के मध्य में एक छेद हो वह सभी और से बन्द हो । बरनी को कुछ दिन ऐसी स्थिति में रहने दें कुछ दिन बाद आप देखेंगे कि पौधा बक्से में बने छेद की दिशा में ही बढ़ रहा है यह उस छेद से आ रहे प्रकाश के कारण होता है । पौधे प्रकाश की ओर ही बढ़ते हैं । इस प्रभाव को हम एक और प्रकार से देख सकते हैं । यदि हम पौधों को एक ऐसे कमरे में रखें जिसमें एक ही दिशा से प्रकाश आता हो तो पौधे प्रकाश वाली दिशा की ओर ही बढ़ेंगे ।

एक विशिष्ट प्रकार का बीज जो अंकुरण हेतु सदैव तत्पर रहता है:

बीजों के आवरण अनेक प्रकार के होते हैं । जैसा कि हमने ऊपर देखा कि बीजों में अंकुरण हेतु पर्याप्त भोजन सामग्री होती है किन्तु उन्हें अंकुरण के लिए बाहरी पानी की आवश्यकता होती है । कुछ विशिष्ट प्रकार के बीज होते हैं जिनके अंदर अंकुरण हेतु आवश्यक पानी समाया रहता है ।

इन विशिष्ट प्रकार के बीजों में से नारियल एक है । इसमें भ्रूण कई परतों के अंदर सुरक्षित रहता है जैसे जुटाएं तथा कवच । नारियल का भ्रूण खोपरे के रूप में कवच के अंदर रहता है तथा उसके अंदर पानी रहता है । यह पानी भ्रूणपोष होता है । नारियल बिना अंकुरण के लंबे समय तक रह सकता है तथा महासागरों पर तैरते हुए लंबी दूरी का सफर तय कर सकता है ।

किन्तु जब उसे ऊष्म वातावरण उपलब्ध हो जाता है तब भ्रूण में वृद्धि प्रारंभ हो जाती है तथा वह कवच के छेद से बाहर प्रकट हो जाता है । बाहर का पानी उसकी वृद्धि में सहायक होता है किन्तु बीज के अंदर न्यूनतम आवश्यकताओं हेतु पानी उपलब्ध रहता है ।


8. बिना बीज के पौधों का उगना (Growing Plants Without Seeds):

बीज पौधे का वह भाग है जिससे हम नया पौधा उगाते हैं । किन्तु पौधों का एक विशिष्ट गुण होता है कि उसके किसी भी भाग से नए पौधे उगाए जा सकते हैं । अधिकांश पौधों में इस हेतु किन्हीं विशिष्ट तकनीकों की जैसे ऊतक संवर्धन (टिश्यू कल्चर) अथवा हारमोनल ट्रीटमेंट यानी उपचार की आवश्यकता होती है ।

फिर भी हमारे आस-पास ऐसे कई पौधे हैं जिन्हें हम बीज के अलावा अन्य भागों से नए पौधे उगाते हैं । नए पौधे उगाने हेतु हम तना, पत्ती अथवा जड़ों का प्रयोग करते हैं । बीज के माध्यम से प्रजनन एक नए पौधे अपने पूर्व पौधों से अनेक प्रकार से भिन्न होते हैं । अलैंगिक अथवा लैंगिक प्रक्रिया होती है । इसलिए नए पौधे अपने पूर्व पौधों से अनेक प्रकार से भिन्न होते हैं । अलैंगिक अथवा वर्धी (वैजिटेटिव) प्रक्रिया द्वारा उत्पन्न नए पौधों में अपने मूल पौधे के सभी लक्षण विद्यमान रहते हैं ।

तनों के माध्यम से प्रजनन:

इस प्रक्रिया को प्राय: परिपक्व तने की एक कलम को काटकर हल्की मिट्टी में रोप दिया जाता है । क्रोटोन, जवा कुसुम (हिवीस्कस), बोगन वेलिया, कोलिस जैसे पौधे तनों के माध्यम से आसानी से उगते हैं । अनेक बार यदि कलम को पानी में रखा जाए तो उसमें जड़ें निकलती हुई दिखाई देती हैं ।

नए पौधे तनों की गाठों में से उत्पन्न होते हैं जैसे कसावा (टेपिओका) तथा गन्ने के पौधों में । कसावा के तने के टुकड़े को गीली मिट्टी में समानांतर स्थिति में रखकर दबाएं जिससे उसकी गाठों का संपर्क गीली मिट्टी से हो जाए । कुछ दिन बाद आप देखेंगे कि उसकी गाठों में जड़ें निकल आई हैं । फिर उसमें पौधे ऊगकर ऊपर की ओर बढ़ने लगते हैं ।


9. विशिष्ट प्रकार के तनों से पौधे (Plants from Special Types of Stems):

जैसा कि हमने पूर्व में देखा कि अनेक पौधों के तने परिवर्तित रूप में जमीन के अन्दर रहते हैं वहां वे कलिका को सुरक्षित रखते हैं जहां से नए पौधे उगते हैं तथा उनकी वृद्धि हेतु पर्याप्त भोजन सामग्री भी उपलब्ध कराते हैं ।

जब पौधे का जमीन से ऊपर का भाग सूखकर मर जाता है तो परिवर्तित रूप में कलिकाओं सहित तना जमीन के अन्दर सुप्तावस्था में बना रहता है तथा उगने हेतु जब उपयुक्त परिस्थितियां हो जाती हैं तो नए पौधे उग आते हैं (मूल पौधे से अधिक संख्या में) । कुछ परिवर्तित रूप में पाए जाने वाले तने जिनसे नए पौधे उगते हैं वे हैं कन्द व प्रकन्द ।

कंदों से पौधे:

हम सब भली-भांति जानते हैं कि प्याज एक कंद होता है । कभी-कभी हम यह देखते हैं कि प्याज को यदि कई दिनों तक वैसे ही रहने दिया जाए तो उसमें जड़े व अंकुर फूट आते हैं । प्याज के अच्छे अंकुर पाने के लिए उसे एक ऐसी बोतल के मुंह पर रख दें जिस पर वह फिट बैठ जाए । बोतल में इतना पानी भरिए जिससे वह प्याज की पैंदे को छूने लगें । बोतल को किसी ठंडे स्थान पर रख दीजिए । यदि बोतल पारदर्शी है तो कुछ ही दिनों बाद आपको कन्द के पैंदे से जड़ें निकलती दिखेंगी अंकुर भी ऊपर की ओर बढ़ते दिखेंगे ।

घनकन्द (कॉर्म) एक विशिष्ट प्रकार का कन्द होता है । इसे प्राय: ठोस कन्द कहते हैं तथा इसकी छीलने योग्य परत नहीं होती । अरबी तथा कचालू (मार्फोफैलू) घनकन्द के अच्छे उदाहरण हैं । इन्हें जमीन में गाड़ने से एक से अधिक पौधे उगते हैं । सजावटी पौधों के जमीन के अन्दर घनकन्द होते हैं जो प्रतिवर्ष नए अंकुर व फूल देते हैं ।

प्रकन्दों (राइजोम) से पौधे:

अदरक एक प्रकन्द है जिसमें से हम आसानी से अंकुर प्राप्त कर सकते हैं । एक अन्य प्रकन्द है हल्दी । इसे बाजार में लाने से पूर्व उबाला जाता है । अंत: इसमें अंकुरण नहीं होता । ताजे अदरक को गीली रेत में गाड़ दें । कुछ दिन बाद उसमें अंकुर फूटने लगेंगे । इन्हें और अधिक वृद्धि हेतु बगीचे में रोपना चाहिए ।

एक सुपरिचित पौधा जो जमीन के अंदर प्रकंदों के माध्यम से गुणित होता है वह है केला । केले का वास्तविक तना प्रकंद के रूप में जमीन के अंदर ही रहता है, वहां उसका विभाजन होता है तथा अंकुर के रूप में नए पौधे जमीन के ऊपर निकलते हैं । जमीन के ऊपर तने के रूप में जो भाग हम देखते हैं वह वास्तव में पत्तियों का झुण्ड होता है । यद्यपि केले का पौधा 7 मीटर ऊंचा व उसकी परिधि एक मीटर तक हो सकती है किन्तु यह शाखीय होती है न कि लकड़ी युक्त तना ।


10. पत्तियों से नए पौधे (New Plants form Leaves):

कई रसदार पौधों की पत्तियों के किनारों पर कलियां रहती हैं जो नए पौधों के रूप में विकसित होती हैं । जब ये पत्तियां जमीन पर गिरती हैं जहां पानी उपलब्ध रहता है, (प्राय: इन्हें बहुत कम पानी की आवश्यकता रहती है) पत्तियों के खांचोचों में से जड़ी के रेशे बढ़ना प्रारंभ हो जाता है, तथा कुछ ही दिनों में नए पौधे आ जाते हैं । कभी-कभी जब परिस्थितियां प्रतिकूल रहती हैं तब नए पौधे तभी से विकसित होने लगते हैं जब पत्तियां अपने मूल पौधे पर ही रहती हैं ।

यह रोचक प्रक्रिया हम पत्थर-चट्टा या पत्ते गाजा की पत्तियों में देख सकते हैं । परिपक्व पौधे से कुछ पत्तियां लें व उन्हें नम मिट्टी पर अथवा धूप से दूर कपास की गीली परतों पर रखें । आप जड़ों की वृद्धि को देख सकते हैं यदि कुछ दिन और अवलोकन करें तब आप नया पौधा भी देख सकेंगे । किसी पुरानी पत्रिका के पन्नों के बीच रखी हुई पत्तियां भी अपने अंदर संचित नमी से विकसित होने लगेंगी किन्तु उन्हें यदि समय पर मिट्टी में स्थानांतरित नहीं किया तो वे मर जाएंगी ।


11. अन्य पौधों से पौधों का विकास (Evolution of Plants from Other Plants):

पौधों के अन्य कई भागों में कलिया होती हैं जिन्हें सहायक कलिया कहते हैं जो नया पौधा विकसित कर सकती है । इस प्रकार के विकास के दो उदाहरणों की हम यहां चर्चा करेंगे ।

गाजर के शीर्ष से पौधे का विकास:

गाजर से शीर्ष से 1 से.मी. का टुकड़ा काटे-जिसमें पत्तियों के डंठल अभी भी विद्यमान हों इसे कपास की परतों पर सीधा रखें अर्थात पत्तियों वाला भाग ऊपर रखें । कपास में नमी बनाए रखें । जब भी पानी की आवश्यकता हो पानी डालते रहें । आप देखेंगे कि शीर्ष से नई पत्तियां उग आई हैं तथा कपास में जड़ें फैल रही हैं । इसे आप बगीचे में रोपकर और भी विकसित कर सकते हैं ।

अनानास का पौधा विकसित करना:

एक अनानास लीजिए जिसके शीर्ष पर पत्तियों का गुच्छा विद्यमान हो । गाजर के समान ही इसके शीर्ष का एक से.मी. का टुकड़ा पत्तियों सहित काट लें । इसे रस सूखने हेतु दो-तीन दिन तक वैसे ही रखा रहने दें । फिर उसे मिट्टी भरे बर्तन में इस प्रकार रखें कि फल वाला भाग मिट्टी के अंदर रहे व पत्तियां मिट्टी से ऊपर हों ।

आवश्यकतानुसार इसे सींचते रहिए । कुछ ही हफ्तों में नई पत्तियां फूटने लगेंगी । बर्तन को यदि प्लास्टिक की थैली में रखकर उसका मुंह बांध दिया जाए तो पौधे के विकास में और अधिक गति आयेगी । इसमें पानी की आवश्यकता होगी । यद्यपि उतनी नहीं जितनी खुले बर्तन में होती है । अत: ध्यान रखिए व आवश्यकता होने पर सिंचन करें ।

जब पौधे का विकास स्पष्ट रूप से दिखने लगे, इसे जमीन में अथवा बड़े बर्तन में स्थानांतरित कर दें जिससे उसका पूर्ण विकास होकर फल आ सकें । अनानास के पौधे में जब फूल लगें तब उसका अवलोकन करें । तली के प्रत्येक भाग में नीले रंग के छोटे-छोटे फूल आते हैं जो छोटे अनानास की शक्ल के होते हैं तथा दिखने में बहुत सुन्दर लगते हैं ।


12. पौधे व पानी (Plants and Water):

सभी पौधों को पानी की आवश्यकता होती है । उन पौधों को भी पानी चाहिए होता है जो सुखी परिस्थितियों में ऊगते हैं । पानी जड़ों द्वारा जमीन से एकत्र किया जाता है तथा पौधे के सभी भागों को इसकी पूर्ति की जाती है चाहे वे कितनी भी ऊंचाइयों पर क्यों न हो ।

किन्तु एक पौधे को कितने पानी की आवश्यकता होती है तथा उसका क्या हश्र होता है ? इस संबंध में हम कुछ सरल सी गतिविधियां करेंगे जो हमें इस प्रश्न का उतार उपलब्ध कराएंगी ।

पौधे पानी लेते हैं:

पूर्व में बताई गई विधि के अनुसार एक उथले बर्तन में गीला कपास रखकर उस पर मूंग अथवा राई के बीज डालकर अंकुरों का उद्यान बनाइए । 4-5 दिन बाद जब अंकुर बड़े हो जाए तब पानी में कोई भी रंग डालकर (शीघ्र घुलने वाली लाल स्याही अथवा खाने में प्रयुक्त कोई भी रंग चल सकता है) उसे कपास पर डालें । 

फिर अंकुरों के तनों के रंग को देखिए । वे उसी रंग के हो जाएंगे जो रंग कपास पर डाला है । रंग को अंकुरो में ऊपर की ओर जाने में जो समय लगता है वह पौधे द्वारा लिए जाने वाले पानी की दर को दर्शाता है ।

हम रंगीन पानी में किसी ताजे तोड़े हुए मुलायम फूल के डंठल को अथवा किसी मुलायम शाखा को डालें तब हमें यही प्रभाव दिखाई देगा । कुछ समय बाद वह रंग फूल की पंखुड़ियों अथवा डंठल में दिखाई देगा । इसके लिए फूल का रंग मूलत: सफेद अथवा हल्की शेड में होना चाहिए । जवाकुसुम का सफेद फूल इस प्रयोग हेतु उपयुक्त होगा ।

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