चंद्रगुप्त मौर्य की लघु जीवनी | Short Biography of Chandragupta Maurya in Hindi

मौर्य राजवंश की स्थापना चंद्रगुप्त मौर्य ने की । लगता है वह साधारण कुल का था । ब्राह्मण परंपरा के अनुसार उसकी माता शूद्र जाति की मुरा नामक स्त्री थी जो नंदों के रनवास में रहती थी ।

लेकिन एक पुरानी बौद्ध परंपरा से ज्ञात होता है कि नेपाल की तराई से लगे गोरखपुर में मौर्य नामक क्षत्रिय कुल के लोग रहते थे । संभव है कि चंद्रगुप्त इसी वंश का था । अपने शासन के अंतिम दिनों में जो नंदों की कमजोरी और बदनामी बढ़ती जा रही थी उसका फायदा उठाते हुए चंद्रगुप्त ने कौटिल्य नाम से विदित चाणक्य की सहायता से नंद राजवंश का तख्ता पलट दिया और मौर्यवंश का शासन कायम किया ।

चंद्रगुप्त के शत्रुओं के विरुद्ध चाणक्य ने जो चालें चलीं उनकी विस्तत कथा मुद्राराक्षस नामक नाटक में हैं जिसकी रचना विशाखदत्त ने नौवीं सदी में की ‘ आधुनिक काल में इस विषय पर कई नाटक लिखे गए हैं ।

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जस्टिन नामक यूनानी लेखक के अनुसार चंद्रगुप्त ने अपनी 600,000 की फौज से सारे भारत को रौंद दिया । यह बात सही भी हो सकती है और नहीं भी लेकिन यह सही है कि चंद्रगुप्त ने पश्चिमोत्तर भारत को सेल्यूकस की गुलामी से मुक्त किया । यह इलाका सिंधु नदी के पश्चिम में पड़ता था । ऐसा लगता है कि इस यूनानी वाइसराय के साथ हुई लड़ाई में चंद्रगुप्त विजयी रहा ।

अंत में दोनों के बीच समझौता हो गया और चंद्रगुप्त से 500 हाथी लेकर उसके बदले सेल्यूकस ने उसे पूर्वी अफगानिस्तान, बलूचिस्तान और सिंधु के पश्चिम का क्षेत्र दै दिया । इस प्रकार चंद्रगुप्त ने विशाल साम्राज्य स्थापित कर लिया जिसमें पूरे बिहार तथा उड़ीसा और बंगाल के बड़े भागों के अतिरिक्त पश्चिमी और उत्तर-पश्चिमी भारत और दकन भी थे ।

फलतः मौर्यों का शासन, केवल तमिलनाडु तथा पूर्वोत्तर भारत के कुछ भागों को छोड्‌कर सारे भारतीय उपमहादेश पर छा गया । उत्तर-पश्चिम में तो मौर्यों का आधिपत्य कई ऐसे भी इलाकों पर था जो ब्रिटिश साम्राज्य में भी शामिल नहीं थे ।

साम्राज्य का संगठन (Organization of Empire):

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मौर्यों ने बड़ा ही विस्तृत प्रशासन तंत्र स्थापित किया । इसकी झलक हमें मेगास्थनीज की पुस्तक इंडिका और कौटिल्य के अर्थशास्त्र में मिलती है । मेगास्थनीज यूनान का राजदूत था और उसे सेल्युकस ने चंद्रगुप्त मौर्य के दरबार में भेजा थी ।

कह मौर्यों की राजधानी पाटलिपुत्र में रहता था और उसने न केवल पाटलिपुत्र के, अपितु सारे मौर्य साम्राज्य के शासन का विवरण लिख छोड़ा है । उसका यह विवरण पूरा-पूरा नहीं बच पाया परंतु उससे लिए गए उद्धरण कई परवर्ती यूनानी लेखकों की पुस्तकों में आए हैं ।

इन सारे टुकड़ों को इकट्‌ठा करके पुस्तक के रूप में इंडिका के नाम से प्रकाशित किया गया है । इस पुस्तक से मौर्यकाल के प्रशासन समाज और अर्थव्यवस्था पर अच्छा प्रकाश पड़ता है ।

मेगास्थनीज के इस विवरण को कौटिल्य के अर्थशास्त्रं से परिपूरित किया जा सकता है । यद्यपि अर्थशास्त्र को अंतिम रूप मौर्य शासन के कई सदियों के बाद मिला, तथापि इसके कुछ खंडों में आई बातें यथार्थ हैं और मौर्य प्रशासन एवं अर्थव्यवस्था के बारे में प्रामाणिक जानकारी देती हैं । इन दोनों स्रोतों के आधार पर हम चंद्रगुप्त मौर्य के प्रशासन तंत्र का खाका खींच सकते हैं ।

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चंद्रगुप्त मौर्य स्वेच्छाचारी शासक था और सारे अधिकार अपने ही हाथों में रखे हुए था । अथर्शास्त्र के अनुसार राजा का आदर्श उच्च होता था । उसका कथन है कि प्रजा के सुख में ही राजा का सुख है और प्रजा के दु:ख में उसका दु:ख । परंतु हमें मालूम नहीं कि राजा ने इस आदर्श का पालन कहाँ तक किया ।

मेगास्थनीज के अनुसार राजा की सहायता करने के लिए एक परिषद् गठित थी । बड़े-बड़े बुद्धिमान लोग इसके सदस्य थे । इस बात का कोई प्रमाण नहीं मिलता है कि राजा इस परिषद् की सलाह मानने को बाध्य था; परंतु ऊँचे अधिकारियों का चयन इस परिषद् के सदस्यों में से ही किया जाता था ।

साम्राज्य अनेक प्रांतों में विभक्त था । हर एक प्रांत एक-एक राजकुमार के जिम्मे लगा रहता था । राजकुमार राजवंश की किसी संतान को बनाया जाता था । प्रांत भी छोटी-छोटी इकाइयों में विभक्त थे । ग्रामांचल और कारांचल दोनों के प्रशासन की व्यवस्था थी । उत्खननों से पता चलता है कि बहुत-सारे बड़े-बड़े नगर मौर्यकाल के हैं । पाटलिपुत्र, कौशांबी, उज्जयिनी और तक्षशिला चोटी के नगर थे ।

मौर्य राजधानी पाटलिपुत्र का प्रशासन छह समितियाँ करती थीं । हर समिति में पाँच-पाँच सदस्य होते थे । ये समितियाँ सफाई विदेशियों की रक्षा जन्म और मृत्यु का लेखा बाटों और मापों का नियमन और इस तरह के अन्यान्य कार्य करती थीं । विभिन्न प्रकार के मौर्यकालीन बाट बिहार के कई स्थानों से मिले हैं ।

इन सबों के अतिरिक्त केंद्रीय शासन के राज्य के दो दर्जन से अधिक विभाग थे जो कम-से-कम राजधानी के निकटवर्ती क्षेत्रों में आर्थिक और सामाजिक गतिविधि पर नियंत्रण रखते थे । चंद्रगुप्त के प्रशासन की सबसे बड़ी विशेषता थी विशाल सेना । प्लिनी नामक यूनानी लेखक के अनुसार चंद्रगुप्त की सेना में 600,000 पैदल सिपाही, 30,000 घुड़सवार और 9,000 हाथी थे ।

एक दूसरे स्रोत में कहा गया है कि मौर्यों के पास 8,000 अश्वचालित रथ थे । इन सबों के अलावा लगता है कि मौर्यों के पास नौसेना भी थी । मेगास्थनीज के अनुसार, सैनिक प्रशासन के लिए तीस अधिकारियों की एक परिषद् थी जो पाँच-पाँच सदस्यों की छह समितियों में विभक्त थी ।

लगता है कि पैदल घुड़सवार हाथी रथ नाव और सवारी सेना के इन छह अंगों में से हर एक का प्रबंध एक-एक समिति को सौंपा गया था । मौर्य सेना नंद सेना से लगभग तिगुनी थी । राज्यक्षेत्र और आयस्रोतों में बहुत अधिक वृद्धि होने से ही ऐसा हुआ होगा ।

इतनी विशाल सेना पर होने वाले भारी खर्च की पूर्ति चंद्रगुप्त मौर्य कैसे कर पाता था ? यदि हम कौटिल्य के अथर्शास्त्र पर भरोसा करें तो लगता है कि साम्राज्य की सीमाओं के भीतर होने वाले लगभग सारे आर्थिक कार्यकलाप पर राजकीय नियंत्रण था । राज्य ने खेतिहरों और शूद्र मजदूरों की सहायता से परती जमीन तोड़कर कृषि क्षेत्र को बढ़ाया । कृषि-क्षेत्र बढ़ने से राज्य को अच्छी आय होने लगी जो उस पर नए-नए बसाए गए किसानों से राजस्व के रूप में होती थी ।

जान पड़ता है कि किसानों से वसूले गए कर उनकी उपज के चौथे हिस्से से छठे हिस्से तक होते थे । जिन किसानों को सिंचाई सुविधा दी गई उनसे सिंचाई कर वसूला जाता था । इसके अलावा आपातकाल में किसानों को अधिक उपजाने के लिए बाध्य किया जाता था ।

नगरों में बिक्री के लिए जो माल लाए जाते थे उन पर प्रवेशद्वार पर ही चुंगी ले ली जाती थी । खान मद्य की बिक्री हथियारों का निर्माण आदि पर राज्य का एकाधिकार था । इन सबों से अवश्य ही राज्यकोष समृद्ध होता था । इस प्रकार चंद्रगुप्त ने सुसंगठित प्रशासन तंत्र कायम किया और उसे ठोस वित्तीय आधार प्रदान किया ।