सूरदास की जीवनी | Surdas Kee Jeevanee | Biography of Surdas in Hindi!

1. प्रस्तावना ।

2. जीवन वृत्त व रचनकर्म ।

3. उपसंहार ।

1. प्रस्तावना:

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सूरदास सगुण भक्तिधारा के कृष्ण भक्ति शाखा के कविकुल शिरोमणि हैं । वे हिन्दी साहित्य के कमनीय साहित्यकार हैं । उनके काव्य में वात्सल्य, शृंगार तथा शान्त रस की त्रिवेणी-सी बह रही है । वात्सल्य रस के तो वे सम्राट हैं । वात्सल्य रस का तो कोना-कोना झांक आये है ।

‘भ्रमरगीत’ में कृष्ण-गोपियों के बीच के प्रेम वर्णन में विरह-मिलन का जो मार्मिक एवं विशद चित्रण वाग्विदग्धता के साथ सूर ने किया है; वैसा हिन्दी का कोई कवि नहीं कर पाया है । आगे के कवियों की वात्सल्य तथा विरह-भरी उक्तियां सूर की जूठन जान पड़ती हैं । वह हिन्दी काव्याकाश के देदीप्यमान सूर्य हैं । कृष्ण के अनन्य भक्त हैं । संख्य भाव उनकी भक्ति का आधार है ।

2. जीवन वृत्त:

सूदासजी का जन्म संवत 1440 वि॰ आगरे से मथुरा जाने वाली सड़क के किनारे रूनकता नामक ग्राम में हुआ था । उनके पिता का नाम रामदास था । वे सरयूपारीण ब्राह्मण थे । कुछ विद्वान उन्हें चन्दवरदाई के वंशज मानते हैं और मानते हैं कि उनके सातों भाइयों की मृत्यु मुसलमानों से युद्ध करते हुई । सूरदास अपने भाइयों की खोज में निकले थे ।

मार्ग में कुएं में गिरने की वजह से उनकी दृष्टि जाती रही । कृष्ण की भक्ति एवं कृपा से उन्हें दिव्य दृष्टि प्राप्त हो गयी थी । उनके गुरु वल्लभाचार्य थे । सूरदासजी के अन्धत्व के विषय में बहुत-सी किवदन्तियां प्रचलित हैं । वे गऊघाट पर रहते थे । कृष्ण भक्ति के पद गाया करते थे । कृष्ण की जन्मभूमि से उन्हें विशेष मोह था ।

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अपने गुरा वल्लभाचार्य की आइघ से उन्होंने कृष्णलीला का वर्णन किया । संवत् 1620 में पारसोली में उनका देहावसान हुआ । सूरदासजी जीवन-भर कृष्ण की लीलाओं का गायन करते रहे । उनके लिखे सवा लाख पद बताये जाते हैं, किन्तु 5 हजार पद ही प्राप्त हुए हैं । सूरदास की प्रामाणिक रचनाएं सूरसागर, सूरसारावाली, साहित्य लहरी, नलदमयन्ती, ब्याहलो है!

सूरदासजी वात्सल्य रस के सम्राट कवि माने जाते है । अत: उनके काव्य में वात्सल्य भाव की अत्यन्त सजीव, चित्ताकर्षक, मार्मिक, प्रभावपूर्ण अभिव्यक्ति हुई है । बाल मनोभाव की स्वाभाविक, कुतुहलगय, आल्हादकारी, हृदयग्राही, मनोवैज्ञानिक छवि और उनकी चेष्टाओं के जो चित्र सूर ने खींचे हैं, उसमें विविधता, रमणीयता, आकर्षण स्वाभाविकता है ।

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने कहा है: “सूरदास तो वात्सल्य का कोना-कोना झांक आये हैं ।” बालक की वेशभूषा, उसकी क्रीड़ा, गोचारण पर जाना, रूठना, जिद करना, झूठ बोलना, चोरी करते हुए पकड़े जाने पर जैसे यह कहना:

मैया मोरि मैं नहीं माखन खायो ।

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ख्याल परै ये सब सखा मिली, मेरे मुख लपटायो ।।

मैं समुद्री यह घर मेरो हो, ता धोखो में आयो ।

देखत हौ, चीटि काढन गोरस में कर नायो ।।

मैया मोहि दाऊ बहुत खिझायो ।

मोसो कहत मोल को लीनो तोहि जसुमति कब जायो ।।

मैया कबहि बढ़ेगी चोटी, किती बार मोहि दूध पियावति यह अजहूं है छोटी । कभी बलराम भैया की शिकायत करते हुए, तो कभी दूध नहीं दही खाने की जिद पकड़े बालकृष्ण गोचारण के लिए जाने की जिद करते हैं, तो कभी न जाने हेतु मना कर देते हैं ।

कृष्ण की भक्ति करते हुए वे शान्त रस में अपना हृदय खोलकर रख देते हैं । सख्य-भाव की इस भक्ति में वे इतने भाव-विभोर एवं तन्मय हो जाते हैं कि लगता है भगवान् श्रीकृष्ण साक्षात् उनमें समा गये हों । कृष्ण के वियोग में गोपियों की आकुल-व्याकुल दशा का जितना मार्मिक, हृदयस्पर्शी, मनोवैज्ञानिक वर्णन सूर ने किया है, उतना किसी अन्य कवि ने नहीं किया ।

निर्गुण, निराकार ब्रह्म की उपासना पर बल देने वाले कृष्ण सखा उद्धव को गोपियां अपने वाकचातुर्य से ऐसे निरुत्तर कर देती हैं कि उद्धव उनके कृष्ण के प्रति अगाध प्रेम को देखकर ठगे से रह जाते हैं और मथुरा चले जाते हैं ।

उधौ ! मन न भये दस बीस ।

एक हुतो सो गयो स्याम संग कौ आराध्यौं ईश ।।

आयौ घोष बड़ो व्यापारी ।

तथा

सखि इन नैनन ते घन हारै

निसदिन बरसत नैन हमारे,

बरू ये बदरा आये,

विलग जानि मानहूं उधौ ।।

आदि पदों के माध्यम से गोपियों की विरहानुभूति की तीव्रता तथा उनके प्रेम की एकनिष्ठता का वर्णन सूर ने अपने पदों में अत्यन्त सजीवता, मार्मिकता व मनोवैइघनिकता से किया है । सूरदासजी की भक्ति में कहीं कोई आडम्बर या प्रदर्शन नहीं है । जो कुछ है, वह हृदय की सच्ची पुकार है ।

प्रकृति निरूपण में वे सिद्धहस्त है । सूर की भाषा में ब्रजभाषा का माधुर्य है, जिसमें कोमलता और स्निग्धता है । अनुप्रास, उपमा, रूपक, उखेक्षा आदि का प्रयोग स्वभावत: हुआ है । शान्त, अंगार व वात्सल्य रस की अदभुत व्यंजना उनके काव्य में हुई है ।

3. उपसंहार:

सूरदास हिन्दी साहित्यकाश के सूर्य हैं । उनकी कविताओं का भावपक्ष, कलापक्ष अत्यन्त उदात्त है, प्रभावपूर्ण है । जन्मान्ध होकर भी बालवर्णन, विरह वर्णन, प्रकृति वर्णन में बेजोड़ कवि हैं । भाव और रस का सागर उनके पदों में संगीतात्मक माधुर्य ला देता है । निःसन्देह वे हिन्दी के श्रेष्ठ कवि हैं ।

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