मैडम ब्लावैट्स्की की जीवनी | Helena Blavatsky Kee Jeevanee | Biography of Helena Blavatsky in Hindi

1. प्रस्तावना ।

2. उनका जीवन चरित्र ।

3. उपसंहार ।

1. प्रस्तावना:

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मैडम ब्लावैट्स्की ने थियोसोफिकल सोसाइटी के रूप में अपनी सेवाएं मानवता के लिए समर्पित कीं । उन्होंने 19वीं शताब्दी के वैज्ञानिक भौतिकवाद, जड़वाद को चुनौती देकर आध्यात्मिक एवं नैतिक मूल्यों को स्थापित किया । भारतीय धर्म, संस्कृति, योग और चमत्कार से प्रेरित होकर उसका प्रचार-प्रसार देश-विदेश में किया ।

2. उनका जीवन चरित्र:

मैडम हैलिना पेट्रोवना ब्लावैट्स्की का जन्म 31 जुलाई 1831 को रूस के एकाटैरिनोस्लो में हुआ था । उनके पिता कर्नल हौन एक सेना अधिकारी थे । मां हेलेना थीं । बचपन से ब्लावैट्स्की दिव्य दृष्टि तथा अलौकिक ज्ञान सम्पन्न व साहसी थीं ।

उनका विवाह रुसी प्रान्त के राज्यपाल से हुआ, जिनसे तलाक लेने के बाद वे कागज के फूल बनाकर अपना जीवन निर्वाह किया करती थीं । 1849 को उन्होंने गैरीबाल्डी के साथ मेंटाना युद्ध में भाग लिया, जिसमें वह गम्भीर रूप से घायल भी हुईं ।

उन्होंने 1851 को हिमालयवासी महात्मा ऋषि के दर्शन प्राप्त करने के पश्चात् वहां से योग-साधना की दीक्षा ली । पुरुषों के वेश में 1867 से 1870 तक तिब्बत में प्रवेश किया । सन् 1871 में काहिरा में आध्यात्मिक संस्था की स्थापना का प्रयास किया ।

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उन्होंने अपने लेख में प्रेतात्माओं के आवाहन को आध्यात्मिक शक्ति से भिन्न बताया । कर्नल आल्काट के साथ मिलकर 1875 में न्यूयार्क में थियोसोफिकल सोसाइटी की । भारतीय संस्कृति के पुनर्जागरण हेतु भारत तथा लंका के दुर्गम स्थानों की यात्राएं कीं ।

उन्होंने 1881 को बौद्धों को ईसाई बनने से रोका और वहां महाबोधि सोसाइटी की स्थापना की । अपनी योग-साधना के चमत्कार देश-विदेश में दिखाकर उन्होंने सभी को चमत्कृत कर दिया था । विश्व बन्धुत्व तथा योग साधना का विचार लिये वे आजीवन भ्रमण यात्रा पर रहीं ।

उन्होंने ”वायस ऑफ साइलेन्स”, ”ल्यूसीफर प्रेक्टिकल आकल्टिज्म”, ”आइसिस अन्वेल्ड” जैसी पुस्तकों की रचना कर उससे मिलने वाली धनराशि युद्धपीड़ितों को दी । ब्रह्म विद्या, योग विद्या का प्रचार करते हुए 8 मई 1891 को अपनी देह त्यागी।

3. उपसंहार:

मैडम ब्लावैट्स्की ने भारतीय धार्मिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक पुनर्जागरण में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की । उनके साहित्य ने बुद्धिजीवियों की सोच को एक नयी दिशा दी । सर्वधर्मसमभाव व योग धर्ग दर्शन, विज्ञान के समन्वित विचारों के कारण गांधी, नेहरू ने भी उनकी भूरि-भूरि प्रशंसा की थी ।

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