दादा साहब फालके की जीवनी । Biography of Dadasaheb Phalke in Hindi Language!

1. प्रस्तावना ।

2. जीवन वृत्त ।

3 उपसंहार ।

1. प्रस्तावना:

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भारतीय सिनेमा के पितामह कहे जाने वाले दादा साहेब फाल्के भारतीय सिनेमा के मील के पत्थर एवं आधार स्तम्भ हैं । यह कहना कोई गलत नहीं होगा कि यदि दादा साहेब  फाल्के न होते तो भारतीय फिल्में इतनी जल्दी विश्व की आधुनिक फिल्म निर्माण कला में भी चुनौती के रूप में कहीं नहीं खड़ी हो पातीं ।

चाहे फिर वह वी॰ शान्ताराम, राजकपूर, गुरुदत्त, विमल रॉय, सत्यजीत, मृणाल सेन की फिल्मों का विदेशों में प्रदर्शन हो या फिर शेखर कपूर द्वारा ‘एलिजाबेथ’ निर्माण हेतु उत्कृष्ट वेशभूषा के लिए आस्कर एवार्ड के लिए चुना जाना हो । ये सभी उपलब्धियां दादा साहेब फाल्के की प्रेरणा का ही प्रतिफल हैं ।

2. जीवन वृत:

दादा साहेब फाल्के का पूरा नाम ढुंडीराज गोविन्द फाल्के उर्फ डी॰आर॰ फाल्के उर्फ दादा साहेब फाल्के था । उनका जन्म सन् 1870 को महाराष्ट्र की भूमि में हुआ था । दादा साहेब फाल्के विदेश में बनने वाली उस समय की फिल्मों को देखकर यही सोचा करते कि क्या कभी भारतीय ऐसी फिल्में नहीं बना सकते उन्होंने भारतीयों का इस क्षेत्र में दखल बनाने का दृढ़ संकल्प किया ।

यह तो उनका स्वप्न था, किन्तु स्वप्न साकार करने के लिए चाहिए होता है-पैसा । दादा साहेब फाल्के के पास तो केवल स्वप्न था, पैसा नहीं । अपने सपने को पूरा करने के लिए उन्होंने पैसा इकट्‌ठा करना शुरू किया । इधर परिवार का खर्च चलाना मुश्किल था-पत्नी और 9 बच्चों का भरा-पूरा परिवार ।

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उन्होंने ऐसे ही क्रिसमस के एक दिन ‘द लाइफ ऑफ क्राइस्ट’ फिल्म देखी । इस फिल्म में जब उन्होंने जीजस को देखा, तो उन्होंने अपने हिन्दू देवी-देवताओं की चमत्कारपूर्ण लीलाओं पर फिल्म प्रारम्भ करने का निश्चय किया । पत्नी के गहने बेच डाले ।

अब उन्हें एक  स्क्रिप्ट की तलाश थी । अत: उन्होंने अपने साथ कुछ उत्साही लोगों को लेकर ‘फाल्के फिल्म कम्पनी’ बनायी । 1913 में ‘राजा हरिश्चन्द्र’ बनी हिन्दी की पहली फिल्म । इस फिल्म का निर्देशन उन्होंने ही किया ।

इसके लिए दादा ने फोटोग्राफी सीखी । फिल्मों के सेट निर्माण की कला सीखी । रंगमंच की सारी कलाओं को फिल्मों में ढाला । कलाकारों से अभिनय करवाना, डॉयलॉग बुलवाना, यह सब उनके लिए बडा ही कठिन कार्य था । फिल्म वितरण कैसे किया जाता है । इसकी बारीकियां भी दादा ने सीखीं ।

”राजा हरिश्चन्द्र”, ”राम वनवास”, ”नल दमयन्ती”, ‘भस्मासुर मोहिनी’, ”लंका दहन”, ”कृष्ण जन्म”, ”गंगावतरण”, ‘परशुराम’ आदि 95 फिल्मों और 26 लघु फिल्मों का निर्माण किया । अपने 19 वर्ष के फिल्म निर्माण काल में दादा ने फिल्म के क्षेत्र में अनेक प्रयोग किये । सन् 1913 में उन्होंने पहली बार एक अभिनेत्री को उतारा; क्योंकि उस सगय अभिनय का पेशा स्त्रियों के लिए वर्जित था । पुरुष ही महिलाओं की भूमिका निभाते थे । इसके पहले मूक फिल्में बनती थीं ।

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दादा ने फिल्मो को आवाज दी । 1930 में उन्होंने फिल्म निर्माण का कार्य छोड़ दिया । दादा ने फिल्मों में उत्कृष्टता लाने के लिए अपने साथियों को विदेशों में जाकर कैमरे की तकनीक, फोटोसाफी की तकनीक से लेकर सभी प्रकार की तकनीकों के लिए प्रशिक्षण दिलवाया । इसके लिए उन्होंने आर्थिक बोझ भी सहा । आने वाले फिल्मकारों को दादा ने सही रास्ता दिखाया ।

3. उपसंहार:

दादा साहेब ने पौराणिक  फिल्म के चमत्कारपूर्ण दृश्यों को दिखाने के लिए फिल्मों की विषयवस्तु और ट्रिक फोटोग्राफी में काफी नये परिवर्तन किये । मूक फिल्मों से बोलती फिरसों की ओर ले जाने का श्रेय दादा साहेब  फाल्के को ही जाता है ।

दादा ने भारत में पहली स्वदेशी फीचर फिल्म का निर्माण किया । वस्तुत वे फिल्मों के जनक है । उनके फिल्म क्षेत्र में अमूल्य योगदान के लिए ”दादा साहेब फाल्के’ नामक  पुरस्कार की घोषणा की ।

इस पुरस्कार को सूचना एवं प्रसारण मन्त्रालय द्वारा भारत के राष्ट्रपति रचयं प्रदान करते हैं । फिल्म क्षेत्र का यह सबसे बड़ा और  सम्मानीय पुरस्कार है ।

यह पुरस्कार फिल्म क्षेत्र में सभी प्रकार के विशिष्ट और उल्लेखनीय योगदान के लिए दिया जाता है । इस पुरस्कार में 2 लाख रुपये की राशि तथा  स्वर्ण कमल दिया जाता है । यह 1970 से प्रदान किया जाता है । अब तक यह 35 से भी अधिक व्यक्तियों को दिया जा चुका है ।

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