डॉ॰ नामवर सिंह । Biography of Dr. Namwar Singh in Hindi Language!

1. प्रस्तावना ।

2. जीवन वृत्त एवं रचनाकर्म ।

3. उपसंहार ।

1. प्रस्तावना:

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डॉ॰ नामवर प्रगतिवादी आधुनिक आलोचक के रूप में अपना सर्वप्रमुख स्थान रखते हैं । उन्होंने अपनी आलोचक समाजवादी जीवन दृष्टि से हिन्दी की नयी कविता को सकारात्मक मार्गदर्शन भी दिया । उन्होंने अपनी नव्य दृष्टि से हिन्दी आलोचना को नया प्रकाश दिया है । उनकी दृष्टि में आलोचक पूर्वाग्रह से रहित स्वस्थ दृष्टि में ही अपने यथार्थ रूप में सुशोभित होती है ।

2. जीवन वृत्त एवं रचनाकर्म:

डॉ॰ नामवर सिंह ने अपनी आलोचक कृति में सर्वप्रथम ”छायावाद” की समीक्षा की है । तत्कालीन समय में छायावादी कविता को पलायनवादी, व्यक्तिपरक होने के साथ-साथ कई आरोप लग रहे थे । उन्होंने छायावादी कविता को व्यक्तिवाद के कुहासों से निकालकर सामाजिक तथा ऐतिहासिक पृष्ठभूमि से सम्बन्धित किया है ।

यह निश्चय ही मार्क्सवादी आलोचना का कलात्मक एवं परिछूत रूप माना जा सकता है । इसमें उनकी शैली की ताजगी और सर्जनात्मक प्रतिभा का परिचय मिलता है । 1968 में लिखी पुस्तक “कवित्व के नये प्रतिमान” में उन्होंने नयी कविता और काव्य मूल्यों को प्रश्नों के कटघरे में खड़ा किया है ।

“इतिहास और आलोचना” इस पुस्तक में उन्होंने साहित्यिक मूल्यों को रेखांकित व स्पष्ट किया है । उन्होंने इन निबन्धों को पुनर्मूल्यांकनपरक आलोचना और साहित्य इतिहास के बीच सम्बन्धित किया है । 1964 में उन्होंने नयी कहानी पर समीक्षा प्रस्तुत की है । में ”दूसरी परम्परा की खोज” लिखकर उन्होंने हजारीप्रसाद द्विवेदी के व्यक्तित्व के साथ उनके जीवन दर्शन पर ध्यानाकर्षित करवाया ।

3. उपसंहार:

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डॉ॰ नामवर सिंह प्राचीन और आधुनिक आलोचना के सिद्धान्तों पर तुलनात्मक दृष्टि डालते हुए अपने नवीन सिद्धान्तों की सृष्टि करते हैं । उन्होंने आलोचकों की भी आलोचना की है । उनकी वस्तुनिष्ट आलोचना के बीच तीखे आलोचक होने की पहचान भी हो जाती है । उनका गहन चिन्तन, मनन अध्ययनशील प्रवृत्ति, उच्चकोटि की अनुसन्धानपरक समाजवादी दृष्टि की भी समझ हो जाती है ।

उन्होंने आलोचकों एवं कवियों की आलोचना करने में कोई कसर नहीं रख छोड़ी है । उनकी आलोचना की प्रमुख विशेषता यह है कि उन्होंने किसी भी विषय पर अपना मत देने से पूर्व उस पर पूर्णत: विचार किया है । उन्होंने सभी पक्षों पर दृष्टि डाली है । वे मननशील एवं अध्ययनशील साहित्य मनीषी है । आलोचना की चीरफाड़ के बीच भी वे अपने स्वस्थ एवं पूर्वाग्रह से रहित दृष्टिकोण से नये विचार दे जाते हैं ।

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