किशोरीदास वाजपेयी । Biography of Kishoridas Vajapeyi in Hindi Language!

1. प्रस्तावना ।

2. जीवन परिचय एवं रचनाकर्म ।

3. उपसंहार ।

1. प्रस्तावना:

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किशोरीदास वाजपेयी को हिन्दी का ”पाणिनी” कहा जाता है । उन्होंने सम्पूर्ण भारतवर्ष में हिन्दी भाषा परिष्कार के क्षेत्र में नये मानदण्ड स्थापित किये । एक भाषाविद् एवं भाषा-वैज्ञानिक के रूप में उन्होंने भाषा-विज्ञान के क्षेत्र में महत्युपर्ण क्रान्ति लायी । हिन्दी के मानकीकरण में उसके प्रचार-प्रसार में उनका उल्लेखनीय योगदान रहा । उनकी लिखी ”अच्छी हिन्दी” और ”अच्छी हिन्दी का नमूना” भाषा के स्वरूप व विकास की दृष्टि से व्याकरण की श्रेष्ठ पुस्तकें हैं ।

2. जीवन परिचय एवं रचनाकर्म:

किशोरीदास वाजपेयीजी का जन्म कानपुर के रामनगर गांव में सन् 1898 में हुआ था । गांव में प्राथमिक शिक्षा प्राप्त करने के उपरान्त उन्होंने संस्कृत की शिक्षा वृन्दावन से ग्रहण की । फिर बनारस से उन्होंने संस्कृत की प्रथमा परीक्षा और पंजाब विश्वविद्यालय से विशारद की परीक्षा उत्तीर्ण की ।

हिमाचल के एक विश्वविद्यालया में उन्होंने अध्यापन कार्य किया । उन्होंने ”माधुरी” तथा “सुधा” नामक पत्रिका में लेख तथा समीक्षात्मक लेख लिखे । उनकी रचनाओं में “संरकृति के पांच अध्याय”, ”हिन्दी शब्दानुशासन”, ”रस और अलंकार”, ”ब्रज भाषा का व्याकरण”, ”हिन्दी शब्द मीमांसा”, ”भारतीय भाषा-विज्ञान”, ”हिन्दी की वर्तनी तथा शब्द विश्लेषण”, ”काव्य और काव्यशास्त्र”, “राष्ट्रभाषा का प्रथम व्याकरण” इत्यादि    हैं ।

उन्होंने ”मराल” नामक पत्रिका का सम्पादन किया । काशी नागरी प्रचारणी सभा के विरुद्ध वाजपेयीजी ने आन्दोलन भी चलाया । देश की आजादी के लिए उन्होंने “तरंगिणी” में ओजस्वी कविताएं लिखी, जिसके कारण उन्हें जेल की यात्राएं भी करनी पड़ी । देशसेवा, समाजसेवा और भाषा सेवा करते हुए उनका निधन 12 अगस्त 1981 को हरिद्वार में हुआ ।

3. उपसंहार:

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किशोरीदास वाजपेयीजी ने एक भाषा-वैज्ञानिक के रूप में हिन्दी की अशुद्धियों का परिमार्जन कर परिनिष्ठित हिन्दी का आदर्श रूप स्थापित किया । भाषा के मानकीकरण हेतु उन्होंने जो प्रयास किये, वह स्तुत्य

हैं ।

जीते-जी उनके इस अवदान के लिए भले ही उतना सम्मान न मिला हो, लेकिन उन्होंने जो भी कार्य हिन्दी के हित में किया, वह राष्ट्रभाषा हिन्दी के प्रति उनका असीमित प्रेमभाव ही था । हिन्दी की उपेक्षा को देखकर वह बहुत क्षुब्ध हो जाया करते थे । हिन्दी को यथोचित गरिमा और सम्मान देने के लिए उन्होंने जो भी कार्य किये, वह अमूल्य हैं ।

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