एनी बेसेंट की जीवनी | Annie Besant Kee Jeevanee | Biography of Annie Besant in Hindi!

1. प्रस्तावना ।

2. उनका जीवन परिचय एवं आदर्श चरित्र ।

3. उपसंहार ।

1. प्रस्तावना:

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जिन विदेशी महिलाओं ने भारत में रहकर अत्यन्त निष्ठा से भारत-भूमि की सेवा में अपना सर्वस्व अर्पित किया तथा तन और मन से इसे ही अपनी जन्मभूमि एवं कर्मभूमि मान लिया, उनमें श्रीमती एनीबेसेन्ट का नाम विशेष रूप से सम्मानजनक है । हिन्दुत्व के प्रति उनका गहरा लगाव, यहां की सांस्कृतिक विशेषता का ही परिचायक है ।

2. उनका जीवन परिचय एवं आदर्श चरित्र:

एनीबेसेन्ट का जन्म 1 अक्टूबर सन् 1847 को लंदन में हुआ था । उनके माता-पिता आयरिश थे । जब उनकी अवस्था 5 वर्ष की थी, तब उनके पिता की मृत्यु हो गयी थी । अत: माता श्रीमती वुड ने ही उनका पालन-पोषण किया । उनकी मां ने अर्थोपार्जन के लिए छात्रावास का संचालन किया ।

उस समय एनी की देखभाल मिस मार्यात ने की । वे उन्हें जर्मनी ले गयीं, जहां पर एनीबेसेन्ट ने फ्रांसिसी और जर्मनी भाषा का अच्छा अध्ययन किया । इसके बाद वे अपनी माता के पास इंग्लैण्ड आ गयीं और वहां पर संगीत की शिक्षा ग्रहण की ।

सन् 1867 में उनका विवाह रेवरेंड फ्रैंक बेसेन्ट नामक पादरी से हुआ । उन्होंने एक आदर्श पति की कल्पना की थी, किन्तु विभिन्न प्रकार की असंगतियों के कारण विवाह के 1 वर्ष बाद ही दाम्पत्य जीवन में दरार पड़ने लगी । सन् 1869 और 1870 में उन्होंने एक पुत्र और पुत्री को जन्म दिया । दुर्भाग्यवश उनकी मौत हो गयी । पति के व्यवहार व आचरण ने 1874 में उन्हें तलाक लेने पर मजबूर कर दिया था ।

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1883 में वे समाजवाद की ओर आकृष्ट हुईं । समाजवाद के प्रभाव ने उनका ध्यान मानव-समाज की पीड़ा, मुख्यत: गरीब, मजदूर, भूखे बच्चे तथा वेश्यावृति की ओर प्रेरित होने वाली महिलाओं की ओर आकर्षित

किया । 1885 में उन्होंने फैबियन सोसाइटी की सदस्या के रूप में अनेक सामाजिक सुधार सम्बन्धी कार्य किये ।

मैडम ब्लावैट्स्की द्वारा लिखित ”दी सिक्रेट डाक्ट्राइन” नामक पुस्तक को पढ़कर वह ”थियोसोफिकल सोसाइटी” की अध्यक्षा बनीं और 1906 से लेकर 1933 तक इस पद पर बनी रहीं । इस सदस्यता को ग्रहण करने के कारण उन्हें आस्तिक मानकर नास्तिकता के पक्षधर उनके विरोधी बन गये । सन् 1893 में वे अध्यक्षा के रूप में भारत आयीं ।

यहां आकर वह इतनी प्रभावित हुई कि उन्होंने लगभग हिन्दुओं के अधिकांश तीर्थस्थलों की पैदल यात्रा की । खानपान, रहन-सहन व विचारों में स्वयं का भारतीयकरण कर लिया । एनी अपनी पूर्वजन्मस्थली भारत को ही मानती थीं । भारत में रहकर उन्होंने बनारस में सेन्ट्रल स्कूल की स्थापना की ।

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वह भारत की पराधीनता को देखकर थियोसोफिकल सोसाइटी को छोड़कर राजनीति में कूद पड़ीं । उन्होंने ”होमरूल” आन्दोलन चलाया । ”न्यू इण्डिया” तथा ”कॉमन बिल” नामक दैनिक और साप्ताहिक समाचार पत्र निकालकर जनजागृति उत्पन्न की । वह कांग्रेस की कार्यशैली से नाखुश थीं ।

वह अधिकारों को भीख में मांगने की बजाय छीनकर लेने में विश्वास रखती थीं । अत: गरम दल के नेताओं के साथ मिलकर होमरूल की सन् 1910 में स्थापना की । देशवासियों को अपने अधिकारों के प्रति सजग किया । सन् 1917 में वह जेल भी गयीं । इसी वर्ष उन्हें कांग्रेस की अध्यक्षा बनाया गया ।

उन्होंने 1893 के शिकागो में आयोजित विश्व धर्म सम्मेलन में अपने दो भाषण भी दिये । उन्होंने राष्ट्रीय चेतना जागृत करने के प्रयास में 3 माह की नजरबन्दी भी झेली थी । श्रीमती बेसेन्ट ने 15 वर्षों तक सेन्ट्रल हिन्दू कॉलेज का संचालन किया ।

बाद में उन्होंने इसे मालवीयजी को सौंप दिया, जिसे कालान्तर में बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय का दर्जा मिला । सन् 1920 तक उन्होंने सक्रिय राजनीति में भाग लेकर देश की आजादी के लिए कार्य किये । किन्तु गांधीजी के असहयोग, सत्याग्रह और नरम पंथी विचारों के कारण उन्होंने 1920 में अपने आपको कांग्रेस से अलग कर लिया ।

एनी ने भारतीय संस्कृति की रक्षा के लिए पुराणों के महत्व को स्वीकार किया । अनेक शिक्षा-संस्थाओं की स्थापना की । समाज सेवा सम्बन्धी उनके अनेक कार्य थे । श्रीमती बेसेन्ट ने राष्ट्रकुल सदस्य बनकर भारत को आजादी स्वीकार करने हेतु अपेक्षा की थी । वह गोलमेज सम्मेलनों से काफी निराश थीं । भारत को अपनी जन्मभूमि मानने वाली एनीबेसेन्ट ने 20 सितम्बर को अपने प्राण त्यागे ।

3. उपसंहार:

श्रीमती एनी बेसेन्ट ने भारतीय धर्म, दर्शन, शिक्षा, संस्कृति, राजनीति के क्षेत्र में अनेक महत्वपूर्ण कार्य किये । भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन में विशेष योगदान दिया । वह विदेशी महिला होकर भारतीय संस्कृति में

रच-बस गयीं थीं । महात्मा गांधी ने उनकी भारत भक्ति को पारदर्शी, सन्देह से परे और अनुकरणीय कहा था । भारत उनके इस अमूल्य योगदान को कभी भुला नहीं पायेगा ।

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