केंद्रीय बैंक के कार्य | Read this article in Hindi to learn about the seven main functions of central bank. The functions are:- 1. नोट निर्गमन का एकाधिकार (Monopoly of Note Issue) 2. अनुसूचित बैंकों के नकद कोषों का संरक्षक (Custodian of Cash Reserve of Scheduled Bank) 3. अंतिम ऋणदाता (Lender of Last Resort) 4. साख का नियंत्रण (Central of Credit) and a Few Others.

Function # 1. नोट निर्गमन का एकाधिकार (Monopoly of Note Issue):

प्रत्येक राष्ट्र में नोटों के निर्गमन का एकमात्र अधिकार केन्द्रीय बैंक को प्राप्त होता है तथा किसी अन्य बैंक को नोट निर्गमन करने का अधिकार प्राप्त नहीं होता । विश्व के कुछ राष्ट्रों में तो केन्द्रीय बैंक की स्थापना ही नोट निर्गमन के लिए की गई । अविकसित एवं विकासशील राष्ट्रों में नोट निर्गमन का महत्व बढ जाने से बैंक-व्यवस्था का विशेष विकास हुआ है । विकसित राष्ट्रों में बैंक निक्षेप का महत्व बढता जा रहा है ।

नोट निर्गमन एकाधिकार के गुण:

केन्द्रीय बैंक को ही नोटों के निर्गमन का कार्य सौंपने से निम्न लाभ प्राप्त होते हैं:

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(i) जनता का विश्वास:

केन्द्रीय बैंक को नोट निर्गमन का अधिकार देने से जनता के विश्वास में वृद्धि सम्भव हो जाती है ।

(ii) व्यापारिक आवश्यकतायें:

देश की व्यापारिक आवश्यकताओं से निकट का सम्पर्क रहने के कारण केन्द्रीय बैंक द्वारा व्यापारिक आवश्यकताओं का ध्यान रखा जा सकता है ।

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(iii) निर्गमन में एकरूपता:

नोट निर्गमन का अधिकार केवल केन्द्रीय बैंक को देने से निर्गमन में एकरूपता व समानता आ जाती है ।

(iv) त्रुटियों पर नियंत्रण:

इससे सरकार को नोट निर्गमन के सम्बन्ध में त्रुटियों पर नियंत्रण रखने में सरलता हो जाती है ।

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(v) लाभ में सुविधा:

केन्द्रीय बैंक को लाभों पर कर लगाकर नोट निर्गमन के लाभों को प्राप्त करने में सुविधा रहती है ।

(vi) स्थिरता:

केन्द्रीय बैंक द्वारा मुद्रा की आन्तरिक एवं बाह्य कीमत में स्थिरता स्थापित की जा सकती है ।

(vii) नियंत्रण समस्या का समाधान:

केन्द्रीय बैंक को एकाधिकार देने से नियंत्रण की समस्या सुलझ जाती है तथा साख मुद्रा के विस्तार को सीमित कर दिया जाता है ।

(viii) नियमन व नियंत्रण:

मुद्रा स्फीति के भय से बचने के लिए निर्गमित राशि का एक निश्चित प्रतिशत भाग स्वर्ण कोष में रख दिया जाता है जिससे नोट निर्गमन की मात्रा का उचित ढंग से नियमन व नियंत्रण किया जा सके ।

Function # 2. अनुसूचित बैंकों के नकद कोषों का संरक्षक (Custodian of Cash Reserve of Scheduled Bank):

इंग्लैण्ड के केन्द्रीय बैंक की प्रारम्भिक काल से ही व्यापारिक एवं बैंकिंग क्षेत्र में बहुत ऊंची साख थी । इसी कारण इंग्लैण्ड के अधिकांश बैंकों ने अपने खाते बैंक ऑफ इंग्लैण्ड में खोले तथा आपत्ति के समय बैंक ऑफ इंग्लैण्ड से उपयुक्त राशि उधार ले लेते थे । अतः व्यापारिक बैंक स्वेच्छा से केन्द्रीय बैंक में राशि जमा कर देते थे और इस स्वस्थ परम्परा को अमेरिका में 1913 में वैधानिक रूप दे दिया गया ।

इसे अन्य देशों ने भी अपनाना प्रारम्भ कर दिया । केन्द्रीय बैंक का देश को अन्य बैंकों से लगभग उसी प्रकार का सम्बन्ध रहता है जैसा कि एक साधारण बैंक का अपने ग्राहकों से होता है । इस कारण इसे बैंकों का बैंक कहा जाता है तथा इसके पास सदस्य बैंकों के नकद कोषों का एक भाग जमा के रूप में रहता है, जिससे इसे सुरक्षित कोषों का रक्षक कहा जाता है और जो देश की बैंकिंग एवं साख प्रणाली को सुदृढ़ बनाती है ।

लाभ:

इस प्रकार की व्यवस्था के प्रमुख लाभ निम्न हैं:

(i) साख नीति का नियंत्रण:

केन्द्रीय बैंक को व्यापारिक बैंकों के साख निर्माण नीति को नियंत्रित करने के अवसर प्राप्त होते है ।

(ii) नकद कोष में मितव्ययिता:

बैंकों का आपसी लेन-देन केन्द्रीय बैंकों के द्वारा होने से मुद्रा का प्रयोग न्यूनतम मात्रा में किया जाता है जिससे नकद कोषों के उपयोग में मितव्ययिता लाई जा सकती है ।

(iii) कोष का सदुपयोग:

व्यापारिक बैंकों के पास बडी मात्रा में कोष बँधा नहीं रहता जिससे सकट के समय उसका सदुपयोग सरलता से किया जा सकता है ।

(iv) व्यावसायिक परामर्श:

केन्द्रीय बैंक अन्य बैंकों के मित्र एवं मार्गदर्शक का कार्य करके, उन्हें समय-समय पर व्यावसायिक परामर्श भी प्रदान करता है ।

(v) समाशोधन का कार्य:

प्रायः सभी बैंकों के खाते केन्द्रीय बैंक में होने के कारण उन बैंकों के समस्त लेनदेन का समाशोधन भी सरलता से किया जा सकता है ।

दोष:

इस व्यवस्था के प्रमुख दोष निम्न है:

(i) तरल कोषों में कमी:

इस व्यवस्था से बैंकों के तरल कोषों में कमी आ जाती है तथा यह मृत सम्पत्ति के समान पड़ी रहती है जिसको बैंक अन्य कार्यों में उपयोग नहीं कर पाते ।

(ii) ब्याज की हानि:

इन कोषों पर व्यापारिक बैंकों को ब्याज का भुगतान करना होता है, जिससे उसे ब्याज की सहन करनी पडती है ।

Function # 3. अंतिम ऋणदाता (Lender of Last Resort):

व्यापारिक बैंकों के ग्राहकों द्वारा अधिक मात्रा में उधार माँगने पर केन्द्रीय बैंक से सहायता प्राप्त की जाती है और इस प्रकार वह अंतिम ऋणदाता के रूप में कार्य करता है ।

यह सहायता दो ढंगों से की जा सकती है जो निम्न है:

(i) प्रतिभूति पर ऋण:

केन्द्रीय बैंक सरकारी प्रतिभूतियों को धरोहर के रूप में रखकर एक वर्ष की अवधि के लिए ऋण की व्यवस्था की जाती है, जिसमें किसी प्रकार की कोई जोखिम भी नहीं रहती है । इन सरकारी प्रतिभूतियों को किसी भी समय बाजार में बेचा जा सकता है ।

(ii) पुनर्कटौती सुविधा:

व्यापारी द्वारा उधार माल खरीदने पर वह विक्रेता को प्रायः 91 दिन का बिल स्वीकार करके दे देता है । विक्रेता इस बिल को तत्काल अपने बैंक से भुना लेता है । व्यापारिक बैंक उस बिल को आवश्यकता पड़ने पर केन्द्रीय बैंक से पुनर्कटौती करके धन प्राप्त कर लेता है ।

इस प्रकार केन्द्रीय बैंक द्वारा पूँजी की कमी को दूर किया जाता है व साख को प्रोत्साहन मिलता है व व्यवसाय में वृद्धि होली है । इस प्रकार केन्द्रीय बैंक अंतिम ऋणदाता के रूप में सुविधायें देकर व्यापारिक बैंकों को सहायता प्रदान करते है ।

Function # 4. साख का नियंत्रण (Central of Credit):

साख नियमन व नियंत्रण को ही केन्द्रीय बैंक का प्रमुख कार्य माना जाता है । साख नियंत्रण का उपयोग विनिमय दरों में स्थायित्व लाने एवं आंतरिक मूल्य स्थायित्व के लिए उपयोग किया जाता है । मूल्यों का प्रभाव देश की आंतरिक व्यवस्था के अतिरिक्त अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर भी पड़ता है । इस कार्य को केन्द्रीय बैंक का महत्वपूर्ण कार्य माना जाता है ।

भारत में रिजर्व बैंक अधिनियम के आधार पर यह कहा जाता है कि ”बैंक का प्रमुख कार्य बैंक नोटों के निर्गमन को नियंत्रित करना है तथा देशहित के लिए मुद्रा एवं साख पद्धति को संचालित करने तथा भारत में मौद्रिक स्थिरता लाने के उद्देश्य से साधनों को रखा जाता है ।”

सफलता के मूल तत्व:

साख नियंत्रण की सफलता के लिए निम्न बातों का होना आवश्यक है:

(i) केन्द्रीय बैंक का प्रभाव:

देश की व्यापारिक बैंकों पर केन्द्रीय बैंक का यथेष्ट प्रभाव होना चाहिए जिससे उनकी क्रियाओं पर उचित नियंत्रण लगाया जा सके ।

(ii) व्यापक अधिकार:

केन्द्रीय बैंक के पास साख नियमन के व्यापक अधिकार होने चाहिए, जिससे आवश्यकता पडने पर साख का विस्तार या संकुचन किया जा सके ।

साख नियमन के उद्देश्य:

साख नियमन के प्रमुख उद्देश्य निम्न हैं:

(i) आन्तरिक मूल्य स्थायित्व व विनिमय दर में स्थायित्व:

साख नियमन का उद्देश्य देश में आंतरिक मूल्यों में स्थायित्व लाने का होना चाहिए तथा इसके लिए उचित सामंजस्य स्थापित करने के लिए समन्वयात्मक नीति अपनानी चाहिए ।

(ii) रोजगार की उचित व्यवस्था:

साख नियमन का उद्देश्य देश में रोजगार की उचित व्यवस्था करना होना चाहिए जिससे रोजगार समस्या को हल किया जा सके ।

(iii) आर्थिक विकास:

साख नियमन का उद्देश्य देश का अधिकाधिक आर्थिक विकास करना चाहिए, क्योंकि विनिमय स्थिरता, मूल्य-स्तर, संपूर्ण रोजगार आदि में अत्यंत घनिष्ठ एवं गहरे सम्बन्ध बने रहते हैं तथा एक दूसरे में समन्वय स्थापित करके ही उचित ढंग से विकास लाया जा सकता है । इस सम्बन्ध में मौद्रिक नीति के साथ-साथ प्रशुल्क नीति का भी समुचित सहयोग प्राप्त होना आवश्यक होगा ।

Function # 5. सरकारी बैंकर, एजेंट एवं सलाहकार (Government Banker, Agent and Advisor):

व्यक्तियों एवं अन्य व्यापारिक संस्थाओं की भाँति सरकार को भी बैंक की सेवाओं की आवश्यकता होती है । सरकार प्रति वर्ष जनता से कर व अन्य आय के रूप में धन प्राप्त करके उसे प्रशासन व जनकल्याण पर व्यय करती है और इसका हिसाब-किताब रखना एक जटिल समस्या माना जाता है । इसके विपरीत विदेशों से भी अनेक प्रकार के लेनदेन चलते रहते हैं ।

अतः इन समस्त कार्यों को करने के लिए एक ऐसी बैंक की सेवाओं की आवश्यकता होती है जिसकी शाखाएँ देश व विदेश में फैली हो । इन समस्त सेवाओं को केन्द्रीय बैंक द्वारा सरलता से प्राप्त किया जा सकता है जो सरकार के लिए समस्त प्रकार की वित्तीय सेवाएँ भी प्रदान करता है ।

सलाहकार के रूप में कार्य:

केन्द्रीय बैंक सरकारी बैंक, एजेंट एवं सलाहकर के रूप में निम्न ढंग से कार्य करता है:

(i) ऋण व्यवस्था:

आवश्यकता पडने पर सरकार को केन्द्रीय बैंक द्वार अल्पकालीन ऋण दिए जाते हैं ।

(ii) सरकारी हिसाब:

यह बैंक विभिन्न विभागों से सरकारी हिसाबों को तथा उनके खातों को उचित ढंग से रखता है ।

(iii) धन जमा करना:

यह बैंक सरकार के हिसाब में धन जमा करता है ।

(iv) मुद्रा का हस्तांतरण:

यह बैंक सरकर की ओर से धन का हस्तांतरण सुविधापूर्ण बना देता है ।

(v) मुद्रा सौदे इस बैंक द्वारा देश:

इस बैंक द्वारा देश-विदेश में सरकर की ओर से मौद्रिक सौदे किए जाते हैं ।

(vi) वित्तीय परामर्श:

इस बैंक द्वारा समय-समय पर वित्तीय मामलों पर उचित परामर्श ली जाती है जो बैंकिंग एवं मौद्रिक नीति को सफल बनाने में सहायता प्रदान करता है ।

(vii) ऋण की व्यवस्था:

सरकार द्वारा जारी किए गए समस्त ऋणों की उचित व्यवस्था करके हिसाब-किताब आदि को उचित दग से रखा जाता है ।

(viii) ऋण का भुगतान:

सरकार की ओर से जारी किए गए ऋणों व उस पर ब्याज के भुगतान की व्यवस्था इसी बैंक द्वारा की जाती है ।

(ix) सरकारी माल का क्रय-विक्रय:

यह बैंक सरकारी माल एवं विदेशी प्रतिभूतियों का क्रय-विक्रय करती है ।

(x) संकट काल:

यह बैंक सकट काल में असाधारण ऋण की व्यवस्था करके सहायता प्रदान करती है ।

(xi) सरकारी हिसाब रखना:

बैंक सरकार की समस्त आय को प्राप्त करके उसके व्ययों को भी चुकाती है ।

अतः यह स्पष्ट है कि केन्द्रीय बैंक सरकार की अर्थनीति के निर्धारण तथा संचालन में बुद्धि, श्रम तथा धन में सहायक सिद्ध होती है ।

Function # 6. अन्तर्राष्ट्रीय करेंसी का संरक्षक (Custodian of International Currency):

1929 की विश्वमंदी के पश्चात विदेशी विनिमय दर को स्थिर रखने के उद्देश्य से विनिमय समानीकरण कोष (Exchange Equalisation Account) स्थापना की गई, जिनके संचालन का भार केन्द्रीय सरकार को सौंपा गया । अर्जित की जाने वाली समस्त विदेशी मुद्रा को इन कोषों में जमा कर दिया जाता है तथा उसका आवश्यकता होने पर उचित प्रयोग किया जाता है ।

इस प्रकार केन्द्रीय बैंक देश के विदेशी विनिमय कोषों का संरक्षक के रूप में व्यर्थ करता है । विदेशों में दूतावासों के व्यय के लिए भी विदेशी मुद्रा की आवश्यकता होती है व अन्य शासकीय एवं व्यावसायिक कार्यों के लिए विदेशी विनिमय की आवश्यकता पडती है, जिसकी व्यवस्था केन्द्रीय बैंक द्वारा ही की जाती है ।

देश की मुद्रा की दर को स्थिर रखने के उद्देश्य से भी विदेशी विनिमय कोषों को सुरक्षित रखा जाता है । इसके अतिरिक्त केन्द्रीय बैंक के यह भी अधिकतर होता है कि वह देश मई विदेशी विनिमय की समस्त आय को अपने ही नियंत्रण में रखे, जिससे उसे सुविधापूर्वक कार्य में लगाया जा सके । विदेशी विनिमय कोष पर्याप्त मात्रा में होने से विदेशों में उचित साख बनी रहता है ।

Function # 7. खातों का समाशोधन व स्थानांतरण (Bank of Clearance and Transfer):

देश में प्रत्येक बैंक द्वारा केन्द्रीय बैंक में कुछ धन जमा किया जाता है । अतः इन बैंकों के पारस्परिक लेन-देन को नकद में भुगतान न करके केन्द्रीय बैंक की सहायता से समाशोधन की सहायता से पूर्ण कर लेते हैं अर्थात् ऋणी बैंक अपने लेनदार बैंक को एक चैक केन्द्रीय बैंक के नाम से दे देता है, जो केन्द्रीय बैंक खाते में जमा व ऋणी के खाते में नामे लिखकर समायोजित व्यवहार कर दिया जाता है ।

प्रत्येक बैंक के पास दूसरे बैंकों पर लिखे चैक जमा आदि के लिए आते रहते है । अतः केन्द्रीय बैंक ऐसी व्यवस्था करता है कि एक स्थान के समस्त बैंक के प्रतिनिधि क्लर्क एक स्थान पर एकत्रित होकर प्रत्येक बैंक की लेनदारी एवं देनदारी का एक सामूहिक विवरण-पत्र तैयार कर लेता है, जिस पर प्रतिनिधियों की स्वीकृति प्राप्त करके उस विवरण को केन्द्रीय बैंक को भेज दिया जाता है ।

केन्द्रीय बैंक इस विवरण के आधार पर विभिन्न बैंकों के खातों को नामे व जमा कर दिया जाता है । इस प्रकार बिना नकद भुगतान किए समाशोधन गृह की सहायता से लाखों के लेन-देन का निपटारा सरलता से हो जाता है ।

लाभ:

समाशोधन व्यवस्था के प्रमुख लाभ निम्न है:

(i) कम मुद्रा की आवश्यकता:

इस व्यवस्था में समस्त बैंकों के लेन-देन के लिए कम मुद्रा की आवश्यकता होती है तथा उसका अन्य कार्यों में प्रयोग किया जा सकेगा ।

(ii) श्रम की बचत:

बैंकों के समस्त लेन-देन एवं व्यवहारों में बहुत-सा श्रम बच जाता है जिसे बैंक स्वयं अन्य कार्यों में उपयोग कर सकता है ।

(iii) घनिष्ठ सम्बन्ध:

समाशोधन के लिए एकत्रित होने पर बैंक कर्मचारियों के माध्यम से बैंकों में आपस में घनिष्ठ सम्बन्ध स्थापित हो जाता है जिससे समान प्रकार की नीतियों के निर्माण में सहायता प्राप्त होती है ।

(iv) धनराशि का हस्तांतरण:

केन्द्रीय बैंक अपने समस्त सदस्य बैंकों को धन के हस्तांतरण की सुविधाएँ प्रदान करता है तथा ये सेवाएँ निःशुल्क दी जाती है । इससे धन का सुविधापूर्वक व शीघ्रता से हस्तांतरण संभव हो जाता है ।

केन्द्रीय बैंक पर प्रतिबंध:

केन्द्रीय बैंक के निम्न कार्यों पर प्रतिबंध लगाए गए है:

बैंकिंग कार्यों पर प्रतिबंध केन्द्रीय बैंक देश में साधारण व्यापारिक बैंकिंग के कार्य नहीं कर सकता है तथा वह- (अ) अचल सम्पत्ति पर ऋण नहीं दे सकता, (ब) मियादी बिल नहीं लिख सकता है और न स्वीकार कर सकता है, (स) किसी को आरक्षित ऋण प्रदान नहीं कर सकता, (द) जमाओं पर ब्याज नहीं दे सकता, (इ) किसी भी कम्पनी के अंश नहीं खरीद सकता, एवं (फ) व्यापार व वाणिज्य में भाग नहीं ले सकता ।

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